अभी दूर की बात
है माचिस की तीली और उसका छू जाना उसकी सतह से यहां
हां बहुत से देश
हैं ऐसे ही जहां 'वायरस' का छूना बाकी है
ये ऐसे है जैसे
कि चिंगारी से फैली हुई है आग कुछ दूरी पर
उस आग को हम भी
देख रहे हैं उलट पुलट कर
शायद कह रहे हैं
कुछ लोग अभी
कि बहुत दूर है
यहां आना मुश्किल
है
कुछ कह रहे हैं
आएगा भी तो हमारे घर तक पहुंचना मुश्किल है
कुछ तो कह रहे
हैं अब कर लिया जतन, अब कुछ करना ही मुश्किल है
दिन रात उथल पुथल
और उसकी मीडिया की बकैती में
हम परेशान हैं इस
पर कि
माचिस किसने दी, किसने रगड़ा सलाई, किसने छुई सतह, किसने फैलाई आग
और किसने जलाई ये दुनिया
और फिर भी हम देख
रहे हैं उस फैलती आग को
कैसे बचें, क्या करे उससे
बहुत दूर निकलकर
एक दूसरे पर आरोप
प्रत्यारोप और नफरतों के बयार में
कुछ सुलगा रहे
हैं इंसानियत की बीजों को ताकि खत्म हो जाएं इंसान,
उससे पहले ही कि
दूर तलक लगी आग पास पहुंचे
अभी भी मीडिया
में मंडराते पतंगे उसी लौ में जलने को तैयार हैं
दूर से आमंत्रित
कर रहे हैं औरों को भी
और अभी भी जब वह
आग बहुत करीब आ गई है
बेपरवाह है
मीडिया, जनता, और सरकार
बस दिख रहा है
कहीं कोई भिनभिना
रहा है
कहीं कोई जला रहा
है
कहीं कोई बजा रहा
है
और कहीं कोई बजवा
रहा है, जलवा रहा है...
कहीं अब आग
पहुंचने से पहले ही सब कुछ खाक न हो जाये....!
#प्रभात
Prabhat
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