सोचता है वो
खोजता है वो, खुद को कहाँ पाता
है वो
खामोश लफ्ज हों
या आलम हर बार सो जाता है वो
किसी का चेहरा हो
कभी या किसी की आवाज
सुकून की नींद को
हरदम ही तोड़ जाता है वो
शाम हो गयी हो या
रंग बादलों में बन बिगड़ रहे हों
यादों का रंग
बुलबुला बनकर बिखेर जाता है वो
गुलों का खिलना
हो या बासंती भ्रमरों का मचलना
उसे देख कर
सिहरना और फिर सब भूल जाता है वो
मस्ती में घूमना
और फिर तरु की ओट में बैठ जाना
मां के आंचल में
छिप उससे मिलने चला जाता है वो
मैं-मैं हूँ कभी
या तुम-तुम हो, कभी नहीं बताता
है वो
कुछ भी कहीं हो, किसी ने कही हो 'हम' कह जाता है वो
#प्रभात
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!