तुम्हे मेरी खामोशी पढ़ने का तजुर्बा जब भी
होगा!
तुम्हे मेरी खामोशी पढ़ने का तजुर्बा जब भी होगा
तो ये दुनियां मुझसे मिलने को बेताब बहुत होगी
मैं निकल चुका होऊंगा हजारों का सहारा बन कर
तब जब दुनियां बेसहारा बनकर मुझे ढूंढ रही
होगी
घुमड़ते बादल के नजारे देख कर खुशी होती तो है
मालूम तुम्हे नहीं टपकने का मकसद क्या रहा होगा
जब हवाओं को बादल की ख्वाहिश का पता होगा
तो दुनियां स्वर्ग में होने का अहसास कर रही
होगी
एक चिंगारी से जला रहे है बहुत ऊंचे पेड़ छोटों
को
खुद जलकर उन्हें द्वेष कहाँ मालूम चल रहा होगा
हकीकत बयां होगा जब सामने बैठ कर दोनों के
तो बचपना एक सारे जुल्मों पर भारी पड़ रहा होगा
तुम्हारा प्यार मुस्कराते हुए तब जब जताने
आएगा
तब ये दुनियां मेरे न होने की वजह बता रही
होगी....
-प्रभात