Tuesday, 9 June 2015

क्यों क्योंकि तुम सदाबहार हो.......

क्यों क्योंकि तुम सदाबहार हो.......  

क्यों एक पन्ना रोक देता है
मुझे आगे बढ़ने से
बस एक फूल ही तो तुम बनाई थी
इतना सुंदर नहीं परन्तु
तुम्हारी सुन्दरता छिप सी गयी है इसमें
आज पहली मुलाकात फिर हो गयी है
क्यों बिना रंगों के ये फूल अच्छे लगते है
मुझे वाटिका के फूलों से
न हंसा जा रहा है न रोया जा रहा है
बस मन से थोड़ा मुसकराया जा रहा है
तुम पन्नों को ही छूयी थी तब
मुझे लगा तुमने
पिछली बार की तरह मुझे ही छू लिया
बिना बोले कुछ बहुत दूर चली गयी
देखो ये पत्तियाँ बिना रंगों के हो गयी है
क्यों ये बेरंग सी पत्तियां
गिरी नहीं है इस सादे पन्ने से
अब तक मैं छुपा कर रखा हूँ तुम्हे
इस फूल की तरह
ताकि कहीं तुम्हारी खुशबू चली न जाये
ढूंढ़ते-ढूंढ़ते तुम्हारी याद इस पन्ने तक ले जाती है
मेरे सुन्दर पन्ने ओंस की एक बूँद लिए बैठे है
कुछ सजे से दिख रहे है कुछ
सजने बाकी है
मुझे तुम्हारे श्रृंगार उस मौसम की याद
दिलाते है
क्यों तुम मधुमास बनकर आयी और
तुम चली गयी पतझड़ बनकर   
लो बंद कर दिया मैंने अब वो डायरी
के पन्ने को
पता है तुम सदाबहार हो
परन्तु वो पुरानी पत्तियां गिरी नहीं है
क्योंकि कभी तुमने ही
मुझे संभाला था अपना समझकर   
क्यों नयी पत्तियां आयेंगी एक न एक दिन
और पुरानी पत्तियां चली जायेगी
तुम्हारी तरह एक न एक दिन
क्यों क्योंकि तुम सदाबहार हो.......  

-प्रभात 

3 comments:

  1. सुन्दर रचना

    http://manojbijnori12.blogspot.in/2015/06/importance-of-know-yourself-and-believe.html

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  2. बहुत-बहुत आभार!

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