Wednesday 8 March 2017

सियासत और प्यार

सियासत ए वफ़ा में क्या पता कब क्या हो जाए
कभी दंगा, कभी जुमला और कभी दगा हो जाए

मुहब्बत में थोड़े हलके से सवाल किए जाते है
क्या पता कब किसका किससे जुड़ाव हो जाए
कभी चीखो भी तो ऐसे जैसे बदलाव आएगा
संभालो ऐसे कि फिर से वहीं ठहराव हो जाए
कभी वोटों की गिनती हाथों से हो तो ऐसे हो
एक पर्ची तेरे नाम और एक उसके नाम हो जाए
कभी लड़ो तो ऐसे की मरहम लगाने को मिले
चाहे कितना भी बड़ा साम्प्रदायिक तनाव हो जाए
फेसबुक पर लाईक कर एक और दोस्त बनाओ
क्या पता कब कौन कैसे क्यों अनफ्रेंड हो जाए
-प्रभात



सच्चाई

सच्चाई से रू-बरू तो सब ही होते है पर एक सच्चाई से शायद नहीं। यह राज भी हो सकता है। वह है-
"कोई किसी को कुछ नहीं जानता तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर अगर कोई किसी से परिचित है या उसे जानता है। इन सबके बावजूद उसे किसी बात को लेकर गलतफहमी हो गयी हो और वह नहीं समझता या नही समझना चाहता। इसलिए ही आगे उसके कदम जानने वाले व्यक्ति के विपरीत दिशा में बढ़ने लग जाते है तो गलतफहमी दूर करने के प्रयास में लगे प्रिय को कैसे मन में कचोटता है और क्या करे उसे समझ नहीं आता।"

शायद इसलिए कहते है कि किसी को समझना एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है और यह दुनिया का सबसे मुश्किल काम है।




वक्त

वक्त (past) ने वक्त (present) से पूछ लिया: तुम कौन हो?
वक्त ने कहा: वक्त (future) आने पर बता देंगे।
अर्थात परिस्थितियां बदलती रहती है जैसे -जैसे समय बदलता है। मिलना-बिछुड़ना-मिलना ये क्रम चलता रहता है। ये जरूरी नहीं कि कब क्या हो जाये, पर जरूरी है वक्त का आना इससे पहले कि कुछ हो।

क्योंकि याद आ रही हो..

उजाली रात है,
चंद्रमा साथ है
पेड़ सब खड़े है
बर्फ छितरे पड़े है..
पत्थर पर बैठा हूँ
अभी छुप के देखा हूँ
आवाज आ रही है
झरने के बहने की
लगातार बोलने की
संवाद जारी है
मेरे और आकाश के बीच
दोनों देख रहे है..
मौन होकर सुन रहे है..
आवाज है हौंसलों की
साथ साथ टूटने की
साथ साथ चलने की
गुफ्तगूं वहां भी जारी है..
मेरे और तुम्हारे साथ
क्योंकि याद आ रही हो..
(हिमाचल के कसोल के एक सजीव दृश्य पर आधारित रचना)



तुम्हारी याद

एक तुम्हारी याद रही, एक तुम्हारा प्यार
भूल गया मैं जीवन में सब कुछ पहली बार
उम्मीद नहीं हारा हूँ, मुहब्बत का मारा हूँ
सुनामी में कभी, आस बनकर बह जाता हूँ
कहता तो हूँ, फिर क्यों बचती बातें हर बार
मुझे जब आओ याद, करना चाहूँ पत्र व्यवहार
जितना भी चाहूँ भुलाना तुम्हें, भूल न पाऊं
जाकर कोई लम्हा पास आये, ढूंढ़ न पाऊं
जो चाहूँ करना बात तो, लगता हो गयी हार
कोई करता है प्यार, तो कोई करता नहीं प्यार
तुम खिली कली हो, यूँ ही खिलकर रहना
न आना कभी पास पर दूर से ही मुस्कुराना
हमें न समझों, हमने जान लिया खुद इस बार
क्यों बनती यादें है अधिशेष मिलन की हर बार

-प्रभात

रेल

रेल में आज बैठे ये मालूम पड़ रहा है कि रेल नहीं बदला। हम बदल गए जरूर है, चेहरे पर जो भाव पिछले कुछ महीनों पहले नजर आ रहे थे वो आज नहीं है। उस भाव के साथ जो छिपी रौनक थी वह भी बदल गयी है। जैसे मेरे सिर में बाल थे वैसे नहीं रहे। हेयर स्टाइल बदल गयी है। जैसी दाढ़ी थी वैसी नहीं है। हम बदल गए है...

यहाँ कुछ भी तो नहीं बदलता...अगर बदलता है तो वह दूसरी अवस्था में वापिस लाया जा सकता है। मगर आपके चेहरे दिन ब दिन बदलते जाते है। आपकी फोटो बदलती जाती है। आपकी स्थितियां बदलती जाती है। कई बार पुराने दिनों को लौटाने के लिए अक्सर हम उन जगहों पर जाने की कोशिश करते है और डूब जाते है कल्पना में आप उस दृश्य के साथ बैठे होते है। चेहरे के भाव बदल जाते है...मुस्कुराहटें तो कभी गुस्सा उसी तरह से लबों पर छाये रहते है। मगर कुछ देर बाद फिर कल्पना से जगने पर खुद को उस जगह पर बैठे अकेला पाते है।

जिंदगी रेल की तरह ही है वह सफर तो तय करती ही है बस अंतर इतना है, रेल खुद बदलती नहीं। पर रेल में बैठे लोग बदलते है।
-प्रभात

Wednesday 1 March 2017

यादों की रेल

न तुम कुछ कहो न हम कुछ कहे
गूगल आभार 

न तुम सोंचो न हम सोंचे
न तुम्हे याद करें न तुम याद करो
संभव होता तो 'प्यार' नहीं होता
गाड़ी के हॉर्न के बीच एहसास नहीं होता
बीते लम्हों के पुल पर गुजरती है 
यादों की रेल शायद
ऐसा होता नहीं तो ....
तुम्हारा गुजरना और फिर मेरा थरथराना
या मेरे थरथराने के बाद फिर गुजरना
शायद नामुमकिन होता।

-प्रभात

फैसला प्यार का

गूगल आभार 
एक फैसला प्यार का किताब लिखा करते हैं
वही सफर प्यार का अहसास लिखा करते हैं
किसी बात से वफ़ा- बेवफा नहीं हुआ करते 
तकदीर से बेवफा वफ़ा नहीं हुआ करते हैं
बदले में किसी को कुछ हासिल क्यों हो
किसी की चाहत तुम्हारी ही क्यों हो
प्यार देना था हमें तो हमने दे दिया उन्हें
तो प्यार मिले भी ये शर्त ही मंजूर क्यों हो
कुछ हकीकत प्यार में आकर छुप जाते है
नदी, नाले और नाले, नदी बनकर रह जाते है
राह में किसी मोड़ पर संभलना मुश्किल नहीं
अक्सर सहारा देने वाले ही पहले खो जाते है
ठोकरें मिलती है ये सोंच कर प्यार मत कीजिये
जिंदगी जीने के लिए सिर्फ इजहार मत कीजिये
हर मुश्किल में अपने साथ किसी को मत लीजिये
साथ छूटने पर हाथ पकड़ने की फ़िक्र मत कीजिये

-प्रभात