Wednesday, 8 March 2017

क्योंकि याद आ रही हो..

उजाली रात है,
चंद्रमा साथ है
पेड़ सब खड़े है
बर्फ छितरे पड़े है..
पत्थर पर बैठा हूँ
अभी छुप के देखा हूँ
आवाज आ रही है
झरने के बहने की
लगातार बोलने की
संवाद जारी है
मेरे और आकाश के बीच
दोनों देख रहे है..
मौन होकर सुन रहे है..
आवाज है हौंसलों की
साथ साथ टूटने की
साथ साथ चलने की
गुफ्तगूं वहां भी जारी है..
मेरे और तुम्हारे साथ
क्योंकि याद आ रही हो..
(हिमाचल के कसोल के एक सजीव दृश्य पर आधारित रचना)



2 comments:

  1. गज़ब कर दिया……बहुत ही सुन्दर अन्दाज़ है शब्दों को पकड्ने का

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