Sunday 5 January 2020

प्रेम कभी खत्म नहीं होता


प्रेम कभी खत्म नहीं होता
हाँ वसंत आता है जरूर, पतझड़ के बाद पत्ते नए आते हैं

और फूल नए खिलते हैं
लेकिन प्रेम खूबियों से नहीं गहराईयों से जाना जाता है
अक्सर लगता है कि मैं तुम्हें और तुम मुझे बांध लो
एक सूत्र में
उम्मीदों के पनाह कम नहीं होते!
हजारों बार किसी एक का ख्याल मिटाने पर भी नहीं मिटता
उसमें रंग भरते हैं और चढ़ते जाते हैं एक के ऊपर एक
जिसे हल्का करना आसान नहीं होता
तकरार, टकराहट कई बार होते हैं
मगर इनसे रिश्तों की डोर मजबूत होती है
उन्हें सिवाय गले लगाने के मिटा देना आसान नहीं होता
मैं अगर प्रेम करता हूँ
तो सामने वाला उस प्रेम का तिरस्कार करता है
अगर वह प्रेम नहीं कुछ और हो
मैं चाहता हूँ प्रेम के पन्ने हमेशा गुलाबी हों ताकि
फूलों के सिवाय जमीन आसमान और जल से तुलना न हो सके
हर बार चाहता हूँ भरता रहूं एक ही रंग और देखता रहूं देर तक
लेकिन तुम मुझे याद दिला देती हो दिन- रात का
और फिर भी मुझे केवल केवल एक रंग ही दिखता है
पता ही नहीं चलता दिन रात भी होते हैं या कब से देख रहा हूँ तुम्हें
अब मेरे चाहने से अकेले तो प्रेम का रंग चढ़ेगा नहीं
इसलिए इस विषय को छोड़ दो तो ही अच्छा है
मैं प्रेम का रंग बिसराना चाहता हूँ, भुलाना चाहता हूँ
लेकिन हद कि मैं इनमें से कुछ भी नहीं कर पा रहा

शायद प्रेम की इस गहराई का अंदाजा तो नहीं है
क्योंकि ये असीमित है, अदृश्य है...
-Prabhat

मेरे जैसे लोगों के लिए खास जो असफलता में सफलता ढूंढते हैं


मेरे जैसे लोगों के लिए खास जो असफलता में सफलता ढूंढते हैं-



कभी- कभी दूसरों की वजह से कुछ करना पड़ता है। मेरा नेट क्लियर हुआ तो अम्मी-पिताजी सबसे ज्यादा खुश हुए। एक अच्छे दोस्त को भी उतनी ही खुशी मिलती है अपने दोस्त के कामयाबी पर। कुछ को नाकामयाबी पर भी उतनी ही खुशी मिलती है सकारात्मक रूप से अगर देखें। और कुछ लोग तो केवल इसे नकारात्मक रूप से देखते हैं और बात बात पर आपके सामने अपनी कामयाबी का ढोल पीटते हैं और आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। कभी कभार तो इतना तक बोल दिया जाता है कि आप बोलने के लायक नहीं हो शायद इसलिए क्योंकि उन्हें पढ़ाई लिखाई से मतलब नहीं होता उनके लिए कामयाबी का मतलब सर्टिफिकेट और नौकरी ही है।
लेकिन मेरे सबसे करीब के लोग जानते हैं मैं बहुत सकारात्मक इंसान हूँ। किसी के कहने से विचलित नहीं हुआ। न ही अपनी अनेकों बार की तथाकथित असफलता के लिए खुद को कोसा। मेरे लिए सर्टिफिकेट जॉब किसी तरह के मायने नहीं रखते इसलिए मैंने कई नौकरियां छोड़ दीं। एकैडमिक में रिसर्च छोड़ कर कुछ और करने लगा। सर्टिफिकेट बटोरने के लिए कुछ नहीं किया। मेरे दोस्त इस पर उपहास भी उड़ाते हैं इसलिए ऐसे लोग मेरे दोस्त हैं केवल उस रूप में क्योंकि वे अहसास कराते हैं कि मुझमें कमी है। बाकी उनकी मेरी असफलता से खुशी पर जितना वो खुश होते हैं उतना ही मैं भी।
मैं जो भी लिख रहा हूँ वो मेरे जैसे लोगों के लिए लिख रहा हूँ जो हमेशा किसी न किसी चीज में अपने को असफल मानकर प्रयास करना बंद कर देते हैं या हार मान लेते हैं या वे किसी और के कहने से विचलित होते हैं। मैं उन असफल लोगों को ही सफल कहना चाहूंगा। क्योंकि वे ही मेरे आदर्श हैं। मेरे लिए सफल लोग उतने आदर्श नहीं रहे जितने असफल। मैं किसी की असफलता में सफलता ढूंढ लेता हूँ।
मैंने सबसे पहले 2012 में एमएससी बॉटनी पास करते हुए लाइफ साइंस से नेट की परीक्षा दी..इसके बाद मैंने 2-3 अटेम्प्ट देने के बाद असफलता पर इसे छोड़ दिया अपनी प्राथमिकता में रखना। क्योंकि मेरे लिए तब नेट की कोई प्राथमिकता नहीं थी। मेरे लगभग सभी दोस्तों के नेट निकले, जेआरएफ हुआ। लोग मुझे कोसने लगे। चिढ़ाने लगे। और यहां तक कि मुझे कहने लगे कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
इसके बाद प्रतियोगी परीक्षा देने लगा और फिर मैंने पीएचडी करने के फिराक में दुबारा लाइफ साइंस और एनवायरमेंट से नेट की परीक्षा के लिए तैयारी में लग गया। कई बार लगा निकल जाऊंगा कभी 1 नंबर से तो कभी 2 नंबर से नेट रुक गया और अंततः असफलता की श्रेणी में रहा। हालांकि मैंने जब जब अपने आपको इन तैयारी से महसूस किया कि मैंने सफलता पा ली है क्योंकि मेरे कांसेप्ट क्लियर हुए तो लोगों ने मुझे महसूस कराने की कोशिश की कि तुम किसी लायक नहीं हो, लोगों को देखो क्या कर रहे हैं।
लेकिन मेरे लिए सफलता का मतलब या पैमाना ये कभी न रहा।
इसलिए डीयू के बाद अब तक मैंने पीएचडी गढ़वाल यूनिवर्सिटी से भी छोड़ दिया क्योंकि मेरे पास नेट नहीं था और बिना नेट के मैं पीएचडी नहीं करना चाहता था। शायद ये अच्छा भी रहा। इसके बाद 3 साल का यूजीसी का प्रोजेक्ट में प्रोजेक्ट फेलो रहकर चौथे साल उसे भी छोड़ दिया तो लोगों ने कहा कि तुम इसे छोड़ रहे हो अब तुम्हारे पास लाइफ में कुछ बचा नहीं करने को।
इसी बीच मैंने साउथ कैम्पस से हिंदी जर्नलिज्म का कोर्स अपने रुचि के मुताबिक कर लिया। और प्रोजेक्ट छोड़ने के बाद अब मैं इंटर्न और जॉब मीडिया क्षेत्र में ढूंढने लगा। इतना अच्छा मेरे साथ हुआ कि कुछ अच्छे लोगों की सहायता से मैं इंटर्न के तुरंत बाद मीडिया क्षेत्र में अच्छी जॉब पा गया। इसमें 6 माह काम करने के बाद मैं अस्वस्थ हो गया। इसी बीच मैंने जॉब छोड़ दी।
जॉब छोड़ने के बाद मुझे फिर से सुनना पड़ा कि क्या कर रहे हो। अब कुछ नहीं कर पाओगे। इसी बीच मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ अपना खुद का मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने की कोशिश की जिस पर हम सब कुछ ऐसा रख सके कह सकें जो किसी से नकरात्मक रूप से प्रभावित न हो। निष्पक्ष हो और स्वतंत्र हो। और मैं इसे करने के लिए 1 साल तक मेहनत करता रहा और एक साल के बाद परिणाम बहुत अच्छा निकला । इस बीच मुझे बहुत कुछ सुनना पड़ा लोगों से। कई लोगों ने साथ छोड़ा भी। कुछ लोग मुझसे नफरत और ईर्ष्या भी करने लगे।
इन्हीं सबके बीच मैंने सारा नेट/जेआरएफ एग्जाम का विषय चेंज करके मास कॉम कर लिया। और खुद को अपने मीडिया प्लेटफॉर्म बिजनेस और नेट तक सीमित रखा। 2 बार मास कॉम से नेट की परीक्षा देने पर रिजल्ट अच्छा रहा मगर उत्तीर्ण न हो सका।
हर सुबह नेट एग्जाम देते समय जाते हुए यही सोचता था कि मैं कब सब कुछ शेयर करूँगा कि मैं सफल हो गया जिसे लोग सफलता समझते हैं कब मैं अपनी असफलता को सफलता के रूप में पेश कर सकूंगा। शायद आज वह दिन आ ही गया।
अब तक तो वैसे मैंने अगर 3 विषयों में नेट एग्जाम के कुल अटेम्प के बारे में कोई पूछे तो मैं बता दूं कि मैंने अब तक 13 - 15 "अटेम्प दिया है। मास कॉम का यह तीसरा अटेम्प्ट रहा। लेकिन मैं आपको बता दूं नेट का एग्जाम निकलने से मेरी सफलता तय नहीं होगी। क्योंकि मैं अपने कामों में पहले से सफल रहा हूँ और अब भी हूँ।
ठंड में जब मैं एग्जाम देने के लिए उठता था। तो यही सोचता था कि कब दिन आएगा कि इससे मुक्ति मिलेगी। लोग कहते थे कि कब तक दोगे एग्जाम? मैं कहता ये तो देते रहेंगे चाहे हो या न हो।
सुबह सुबह उठने का मन भी नहीं करता। एग्जाम वाले दिन सेंटर पर जाना एक बहुत बड़ा काम होता है। इतना बड़ा काम कि कम समय में सोना और फिर नींद ना आना ।आ भी जाये तो सुबह उठना। फिर उठकर सेन्टर तक जाना। गूगल मैप का सहारा लेना। सेंटर तक पहुंचकर कुछ खाने पीने के बारे में ख्याल आने पर भी कुछ खा न पाना। फिर अंदर घुसने से पहले सामान को सेंटर पर रखवाना। चेकिंग करवाना। फिर एंट्री और एंट्री के बाद टिक मार्क लगाना। टॉइम बिताना। और अब ओएमआर से कंप्यूटर वाली जेनरेशन में एग्जाम देने का अनुभव। फिर वहां से निकल कर आना। एग्जाम से निकल कर आने के बाद घर से लेकर सभी का पूछना एग्जाम कैसा रहा और मेरा बोलना कि देखते हैं...|
और फिर आंसरकी, आना। उसे चेक करना फिर मोडीफाइड आंसरकी आना, उसे मैच करना। फिर रिजल्ट आते ही कम्प्यूटर में फाइंड का ऑप्शन पर जाकर ढूंढ़ना और निराशा का माहौल क्योंकि हर बार नॉट क्वालीफाईड की लिखी लाइन दिल को चीर देती। हालांकि इतनी बार सुनने के बाद फर्क ही नहीं पड़ता था और मैंने इसलिए ही आंसरकी मैच करना यहां तक कि रिजल्ट देखना भी छोड़ दिया था। इस बार तो किसी ने बताया तो ही पता लगा।
खैर सबसे अहम बात यह है कि हम कामयाब हैं या नहीं सब हम पर निर्भर करता है। मुझे लगता है कि मैं सफल हूँ और सबसे खुशकिस्मत इंसान हूँ। जिसके पास सब कुछ है तो इसका मतलब मैं अंदर से महसूस करता हूँ। इसलिए वैसा ही मिलता है। मैं जिददी बहुत हूं। जो ठान लेता हूँ करना है। उसे चाहे सब छोड़ दें, तो भी मैं अपने ऊपर लेकर वो पूरा करता हूँ चाहे उस बीच कितनी भी अड़चने आएं। मेरे जीवन की कुछ प्राथमिकताएं हैं जिन्हें मैं हर हाल में पूरा करता हूँ। सफलता और असफलता के लिए किसी की भी जरूरत नहीं पड़ती। हां घर वालों का जरूर फर्क पड़ता है क्योंकि वे मेरी तथाकथित असफलता में भी सफलता का एहसास जरूर दिलाते हैं।

खैर ये आत्मकथा नहीं थी। ये सब बस उनके लिए जो किसी चीज के पीछे बहुत परेशान रहते हैं। बहुत कुछ वो करते हैं जो उन्हें नहीं करने का मन करता। मजबूरी में करते हैं ।पैसे के लिए कुछ भी करते हैं। सही मायने में सफल वो होते हैं जो अपने मन से काम करते हैं। प्राथमिकता रुचि को देते हैं और उसकी कमाई को नहीं। अगर आपकी रुचि किसी काम में है और वो कर रहे हैं तो अंत में आपको उससे पैसा भी मिलेगा केवल पैसा ही नहीं सबसे बड़ी बात आत्मविश्वास, खुशी, जज्बा और वो सब जो सकारात्मकता देने के लिए जरूरी हो।

नववर्ष की शुभकामनाओं सहित!
-प्रभात

प्रेम-जन्मदिन


किसी ने कहा था कि तुम प्रेम पर कितना कुछ लिखते हो और भी तो कई विषय हैं जिस पर लिखा करो। मैंने और विषय पर लिखना शुरू किया और फिर मुझे देशद्रोही, गद्दार और हिन्दू विरोधी बता दिया गया। यहां तक कि उन्मादी भी। इतना ही नहीं हर रोज मैसेज पर गालियों की फौज आती है और फिर अपना सारा कीचड़ वहां उछालकर निकल जाती है। शायद यही है कलम की ताकत।
यहां तक कि प्रेम पर भी लिखने से मना कर देते हैं लोग कुछ लोग तो प्रेम पर लिखने को पागल, सनकी, डिप्रेस्ड तक बता गए। खैर प्रभात काफी है इन सबको समझने के लिए।

आज फिर से प्रेम का तड़का लगाने के लिए तैयार हूँ ये नफरतों के सियासी जंग में शामिल लोगों के लिए हैं।

तुम्हें प्रेम दिख जाए तो सड़कों पर खून की जगह गुलाब के फूल दिखने लगेंगे
और तुम्हें गुलाब दिख जायें तो तुम्हें अपनी महबूबा के पास जाने का मन करेगा
सड़कों पर बिना कपड़े ठंड में कंपकंपाती औरत को घर दिलाने का मन करेगा
बेबस और लाचार पड़े हर मकान में मिट्टी के दिए जलाएंगे
चिनगारियां केवल चूल्हें में लगेंगी, दिलों के दरवाजों पर आग की आहट नहीं होगी
.......
तुम्हें नफरत से बात करनी है तो मुझसे करनी होगी
क्योंकि मैं कह रहा हूँ और तुम सुन रही हो
ठीक उसी तरह जैसे मैं सुनता रहता हूँ

एक अनजान सी जगह थी जब मैं नहीं जानता था तुम्हें
और फिर भी तुमने कभी महसूस नहीं होने दिया
कि हम कहीं से अनजान हैं

.........


तो फिर परत दर परत हम खुलते गए, किताबें खुलती गयीं बंद होती गयीं
और फिर बंद हो गईं किताबें और फिर खुली नहीं
अब तक नहीं
ऐसा लगता है कि अरसा हो गया तुम्हें पढ़े
ऐसा लगता है कि अब खोलूं भी तो क्या पढूंगा
शायद किताबों को सुकून मिल रहा होगा ठीक तुम्हारी तरह
और फिर इसी तरह मैं सोचकर उसे नहीं खोल पाता
लेकिन ठंडी में किताबों पर गिरने लगते हैं ओस
गर्मी में पसीने की बूंदें
और फिर बरसात भी आता है
जब सब कुछ गीला सा हो जाता है
नहीं देखा जाता कि वो पन्ने किन उलझनों में बेबस से हैं
कैसे वो आंखों से ओझल हैं
लेकिन मैं पहुंचता हूँ उन पन्नों के करीब
ठीक तुम्हारी तरह और फिर

बंद कर देता हूँ क्योंकि काफी कुछ सहेजकर रखना है
तब तक जब तक वो सभी के दिल ओ दिमाग में पहुंच न जाए
जरूरी ये है कि तुम मुझे नहीं अपने आपको चाहने लग जाओ
और फिर समझ लेना कि मैं और तुम नहीं केवल 'हम' हैं
-प्रभात

बचाने वाली सत्ता को ही मारते देखा है

चुप्पी तड़प मेरी नहीं है क्योंकि तुम मेरे कब हुए ये समझना बाकी है
सियासत में अपना तुम्हारा लगा है वो टूटेंगे या जुड़ेंगे समझना बाकी है
मतलब के नहीं हैं ये साथी सरकार में, डूबेंगे और मुल्क को डुबाएंगे एक दिन
तुम साथ दोगे इंसान का रंग देख कर तब भी इसलिये ये समझना बाकी है



अंधेरा बहुत है, संभालेगा कौन?
चिरागों को बुझते बहुत करीब से देखा है

लाठी, डंडा, गोली चलाएगा कौन?
पुलिस को कहते बहुत करीब से देखा है

कफन का इंतजाम करेगा कौन?
बचाने वाली सत्ता को ही मारते देखा है

-प्रभात

बहुत एकांत है


कृपया इसे संभालकर पढ़ें और पढ़ें भी तो बस मनोरंजन करें क्योंकि कुछ कविताएं और गाने किसी किसी के लिए केवल और केवल रुलाने का काम करते हैं सिवाय किसी फायदे के। ऐसी ही ये पंक्तियां हैं एहसासों में डूबकर न पढ़ें। कमजोर दिल वाले तो ऐसी चीजों से दूरी बनाकर रखें। मैंने लिखी हैं तो बस संजोने के लिए क्योंकि इसमें मेरा मनोरंजन भी है और इसी में मेरी मेहनत भी।
......
बहुत एकांत है
मानो हम बिल्कुल एक दूसरे के करीब हैं

और दिल की धड़कनों को सुन रहे हैं
लेकिन शायद यह एक कल्पना है
ऐसा था कभी
आज हमारे बीच बहुत बड़ी दूरी है
इतनी कि उसमें दिल की धड़कनें क्या
तुम्हारी जोर की आवाजें भी खो जाएंगी शायद
बहुत दूर तक उसमें रेलगाड़ियों की हॉर्न
बच्चों की आवाजें
रात को गली के कुत्तों की आवाजें
और न जाने क्या क्या सुनाई देता है?
लेकिन अफसोस मैं तुम्हें सुनना चाहता हूँ
बस एक बार तुम्हें शायद तुम मेरा नाम पुकारो
इन दूरियों में कितनी बार सोचा और माना भी
तुम हो पहले जैसे उतने ही करीब
लेकिन बस है तो काल्पनिक ही
सच तो इनसे बहुत अलग है
सच है कि मैं दूर हूँ
सच है कि मैं पास हूँ
अब क्या हूँ ये तुम बताओगे क्या कभी
लेकिन मैं कैसे जानूँगा?

तड़पती आत्मा और तड़पते चेहरे से ज्यादा
वेग से तड़प रही हैं सवालों पर सुनती संवेदनाओं की खातिर
आधे पूरे होश में उधेड़ते बुनते न जाने कितनी तस्वीरें
और अनसुलझे प्रतिउत्तर
लेकिन सब धुंधला है...
यहां तक कि रुक रही हैं आवाजें भी उस धुंधले पन में
रुक रहे हैं पास आने से वो दृश्य भी
और परिवेश के सारे घटक की सीमाएं हैं जिसमें सब कुछ अच्छा था शायद!

-प्रभात
 

यह एहसास बता रहा हूँ मैं

तुम्हारे इश्क़ की पहेली सुलझा रहा हूँ मैं
नासमझ खुद को समझा रहा हूँ मैं


आज बेदखल यूं तो हर कोई है किसी से
मगर साथ हूँ अब तक समझा रहा हूँ मैं

वो हसीन हवाओं का झोका गिरा रहा है
बहकर उसके साथ तुम्हारा बता रहा हूँ मैं

दूर तलक बस एक एक सूरत है आंखों में
धुंधला है वो मगर सब कुछ बता रहा हूँ मैं

देख लेना अगर कोई ख्वाब मेरी नजर का
छू लेना पलकों को शायद पास आ रहा हूँ मैं

अब तक नहीं रहा कोई यूं तो किसी का
नहीं हूँ खास मगर यह एहसास बता रहा हूँ मैं
-प्रभात

चाहत की दस्तूर है पूरी तो तशरीफ़ तो होगी

पिछला पोस्ट आप लोगों ने काफी पसंद किया, सराहा भी। उसी के इर्द गिर्द घूमते हुए आगे की कड़ी में एक और पोस्ट यह है-

मोहब्बत की कहानी में कोई और क्यों आएगा
जो हटा नहीं भावों से वो चला क्यों जाएगा
एक मुराद नहीं पूरी तो हमें तकलीफ क्यों होगी
चाहत की दस्तूर है पूरी तो तशरीफ़ तो होगी


तस्वीर ही देखूं तो आंखों से कुछ देखा नहीं जाता
मुसाफिर बन जहां चला था वहां से हिला नहीं जाता
जुनून में चेहरे की रौनक व रंगत बदल सी जाती हैं
गर्म लू से गले की फिजा बदल सी जाती है
बेसहारा जो था सहारे की दरकार कहां होगी
चाहत की दस्तूर है पूरी तो तशरीफ़ तो होगी

यकीनन आजाद हूँ मगर मैं तुम्हारी छांव से नहीं हुआ
छुपा सका खुद को जहां उन घने केशुओ में छुपाया
हश्र आज है जो तन्हाई का कोई इम्तिहान न ले किसी का
सब कुछ बदल जाता है इतिहास बदल जाता है
मगर वो इबादतें नहीं बदलीं तो बात क्या बदलेगी
चाहत की दस्तूर है पूरी तो तशरीफ़ तो होगी
-प्रभात

मैं कहूंगा कुछ नहीं बस तुम्हारी बात की तरह

तुम्हारी उम्र ढल रही होगी मेरी उम्र की तरह

हमारी यादें भी बिसर रही होंगी तरंगों की तरह
मगर रुके से हैं अभी कुछ जज्बात पुराने
वो गहरे हैं इतने खुलते हैं सभी के सामने

कौन है समर्पित भला जो तुम्हारी मांग भरेगा
मेरी किस्सों में कलंकित जो अभिमान करेगा
दिलों के ठहाकों में गर्मजोशी भले ही नाज हो तुम्हें
अभिनंदन है सलीके का बस जो प्यार करेगा

शायद तुम मुस्कुराओ हमेशा किसी आम की तरह
मगर वो खास होगा आये किसी मेहमान की तरह
उस क्षण मुस्करा दूंगा और कोई पूछेगा क्या हुआ
मैं कहूंगा कुछ नहीं बस तुम्हारी बात की तरह
-प्रभात

खामोशियाँ भी हैं बहुत

मुस्कुरा रहा हूँ, खामोशियाँ भी हैं बहुत

अकेले बचपन में तन्हाइयां भी हैं बहुत
बताऊं क्या सच है तो तुम मुस्कुराना छोड़ दो
मेरा किरदार से लड़कर कुछ छिपाना छोड़ दो
मगर मेरी मन्नतों में खुदा शैतानियां हैं बहुत

-प्रभात

क्योंकि मन अभी सच्चा है


खाईयाँ जो दिलों की हैं उसे पाटती हैं पहाड़ों की खाई
संवादी कांटें और तीखी बहसों के घाव हैं जो उन्हें धुलती हैं फिजा की हवाएं
बहुत तेज चलती हैं जब पानी में तरंगों के इर्द गिर्द रेशमी किरणें
भरतीं आहें और झटके से चलती साँसों के बीच सुनते ही
पंछियों की चुलबुलाहट
बहुत सुकून देती हैं, किसी के न होने पर भी बहुत

और फिर इस तरह लगता है सब अच्छा है
इसलिए क्योंकि मन अभी सच्चा है

#प्रभात

मैं गुस्से में खुद को तूफान बना लेता हूँ


मैं गुस्से में खुद को तूफान बना लेता हूँ
खुद भी उड़ता हूँ तुम्हें भी उड़ा लेता हूँ

#प्रभात