तुम्हारे इश्क़ की पहेली सुलझा रहा हूँ मैं
नासमझ खुद को समझा रहा हूँ मैं
आज बेदखल यूं तो हर कोई है किसी से
मगर साथ हूँ अब तक समझा रहा हूँ मैं
वो हसीन हवाओं का झोका गिरा रहा है
बहकर उसके साथ तुम्हारा बता रहा हूँ मैं
दूर तलक बस एक एक सूरत है आंखों में
धुंधला है वो मगर सब कुछ बता रहा हूँ मैं
देख लेना अगर कोई ख्वाब मेरी नजर का
छू लेना पलकों को शायद पास आ रहा हूँ मैं
अब तक नहीं रहा कोई यूं तो किसी का
नहीं हूँ खास मगर यह एहसास बता रहा हूँ मैं
-प्रभात
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