चुप्पी तड़प मेरी नहीं है क्योंकि तुम मेरे कब हुए ये समझना बाकी है
सियासत में अपना तुम्हारा लगा है वो टूटेंगे या जुड़ेंगे समझना बाकी है
मतलब के नहीं हैं ये साथी सरकार में,
डूबेंगे और मुल्क को
डुबाएंगे एक दिन
तुम साथ दोगे इंसान का रंग देख कर तब भी इसलिये ये समझना बाकी है
अंधेरा बहुत है, संभालेगा कौन?
चिरागों को बुझते बहुत करीब से देखा है
लाठी, डंडा, गोली चलाएगा कौन?
पुलिस को कहते बहुत करीब से देखा है
कफन का इंतजाम करेगा कौन?
बचाने वाली सत्ता को ही मारते देखा है
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