Sunday 14 September 2014

बस कभी-कभी!


(1)
ए खुदा मुझे क्यूँ रुलाता है बार-बार
ये जानता है खुशियाँ नहीं मिलती हर बार
हम सही है इसमें बहुत शक होता है तुम्हे
फिर उन लोगों का क्या जो धोखा दे जाते है एक बार ।
(2)
मैंने सीखा है बहुत कुछ और सीखता रहा हूँ
दूसरों की खुशी के लिए अपनी खुशिया बेचता रहा हूँ
गम बाटनें का कोई सरल तरीका निकालते
ये क्या जो हर बार आंसुओं को बिखेरता रहा हूँ ।

(3)
वे समझने लगे हैं अब मदिरे को पानी
अब देख कर उनको होती न इतनी हैरानी
क्योंकि मदिरे का पानी रोकता है उनके आँखों के पानी को
फिर गुजरती है खुशियों में उनकी जिंदगानी ।
                                                              -"प्रभात"






Wednesday 10 September 2014

फिर भी दर्द में आवाज उनके, बदल जाते हैं ।

कुछ लोग अपनी परेशानियों को छुपा जाते हैं    
फिर भी दर्द में आवाज उनके, बदल जाते हैं । 

कुछ दोस्त होते है बातें सुनने को उनके
कुछ समझते है, तो कुछ मजाक बना जाते हैं ।

वक्त बदलता है जैसे घड़ी की सुईओं के साथ
कुछ कठिनाईयां ही, बहुत कुछ सिखा जाते हैं ।

ईश्वर ने बना कर नहीं भेजा था कुछ लिखने वाला
पर दर्द ही न जाने क्यूँ, सब कुछ सिखा जाते हैं ।

बयां करते है हर किसी को अपनी बातों से ही तो वे
बातें न करने को हो तो, फिर रास्ते कैसे बदल पाते हैं ।

अफसोस होता उनको जिनकी बातों को वे सुनते नहीं
सुनते भी हैं तब, जब वे चले जाते हैं ।
                                                                     -“प्रभात




Tuesday 9 September 2014

वे राहें छोटी लगती है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।


फोटो: गूगल को आभार !
मिलना यथार्थ में था नहीं, तभी तुम पर ही बात किया
वे राहें छोटी लगती है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।

सुबह-सुबह उठ कर जब मैं, पहले तुमको याद किया
हवाएं आँखों से मिलती है और वहीं कहीं दिख जाते हो ।

कुछ प्रेमी पंछी कह रहे थे, राग ने उनके खींच लिया
स्वर दिल से टकराते है मानों शब्द अनूठे बुन लेते हो ।

मगन था ऐसे पहले थोड़ा मैं, अभी अभी सहम गया
दर्द आंसुओं में बह जाते है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।

कभी बारिश की बूंदे आयी तो, मन को इनसे सींच दिया
मन खामोशी में तैरती हैं जब पानी लेकर आ जाते हो ।
                                              -"प्रभात"




Friday 5 September 2014

मेरे घर के आँगन में कभी आ जाया करो ।

 

प्रेम कहानी लिख लिख कर दिन-रात सोचता आया हूँ

बस प्रियतमा तेरी चाहत में ये गजल सुनाने आया हूँ ।

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मुसकरा-मुसकरा कर जब कभी तुम आया करो
मेरी साँसों को अपनी साँसों से मिला जाया करो । 

सुबह-सुबह आईनें में मेरी तस्वीर देखना जब कभी
कुछ कह रही होंगी कहानियाँ उन पर हँस जाया करो । 

प्यार के सैलाब में न जाने कौन-कौन मिलेगा अभी
अभी मैं ही हूँ तो मुझसे नजरें न हटाया करो । 

गुजरते लम्हों में अगर मेरा ख्याल आये कभी
मेरे घर के आँगन में कभी आ जाया करो ।

सर्द-गर्म हवाओं में अगर न आना हो कभी
रात ख्वाबों में ही दिख जाया करो । 
                                          -"प्रभात"