फोटो: गूगल को आभार ! |
मिलना यथार्थ में था नहीं,
तभी तुम पर ही बात किया
वे राहें छोटी लगती है जिन राहों में
तुम आ जाते हो ।
सुबह-सुबह उठ कर जब मैं, पहले तुमको याद किया
हवाएं आँखों से मिलती है और वहीं कहीं
दिख जाते हो ।
कुछ प्रेमी पंछी कह रहे थे, राग ने उनके खींच लिया
स्वर दिल से टकराते है मानों शब्द
अनूठे बुन लेते हो ।
मगन था ऐसे पहले थोड़ा मैं, अभी अभी सहम गया
दर्द आंसुओं में बह जाते है जिन राहों
में तुम आ जाते हो ।
कभी बारिश की बूंदे आयी तो, मन को इनसे सींच दिया
मन खामोशी में तैरती हैं जब पानी लेकर
आ जाते हो ।
-"प्रभात"
उम्दा नज़्म।
ReplyDeleteशक्रिया सर!
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