Tuesday 9 September 2014

वे राहें छोटी लगती है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।


फोटो: गूगल को आभार !
मिलना यथार्थ में था नहीं, तभी तुम पर ही बात किया
वे राहें छोटी लगती है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।

सुबह-सुबह उठ कर जब मैं, पहले तुमको याद किया
हवाएं आँखों से मिलती है और वहीं कहीं दिख जाते हो ।

कुछ प्रेमी पंछी कह रहे थे, राग ने उनके खींच लिया
स्वर दिल से टकराते है मानों शब्द अनूठे बुन लेते हो ।

मगन था ऐसे पहले थोड़ा मैं, अभी अभी सहम गया
दर्द आंसुओं में बह जाते है जिन राहों में तुम आ जाते हो ।

कभी बारिश की बूंदे आयी तो, मन को इनसे सींच दिया
मन खामोशी में तैरती हैं जब पानी लेकर आ जाते हो ।
                                              -"प्रभात"




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