Saturday 9 February 2019

सब भूल जाता है वो


सोचता है वो खोजता है वो, खुद को कहाँ पाता है वो
खामोश लफ्ज हों या आलम हर बार सो जाता है वो


किसी का चेहरा हो कभी या किसी की आवाज
सुकून की नींद को हरदम ही तोड़ जाता है वो

शाम हो गयी हो या रंग बादलों में बन बिगड़ रहे हों
यादों का रंग बुलबुला बनकर बिखेर जाता है वो

गुलों का खिलना हो या बासंती भ्रमरों का मचलना
उसे देख कर सिहरना और फिर सब भूल जाता है वो

मस्ती में घूमना और फिर तरु की ओट में बैठ जाना
मां के आंचल में छिप उससे मिलने चला जाता है वो

मैं-मैं हूँ कभी या तुम-तुम हो, कभी नहीं बताता है वो
कुछ भी कहीं हो, किसी ने कही हो 'हम' कह जाता है वो

-प्रभात

तस्वीर: गूगल आभार

अतीत याद करके यूँ न हो उदास


अतीत याद करके यूँ न हो उदास
छोड़ दो उस राह को जो ले जाए उसके पास।


स्मृतियां अनसुलझी सी हों तो सुलझा नहीं पाएंगे हम
किसी बिछड़े राही को राह दे नहीं पाएंगे हम
कहानी के किसी पात्र को खोने से अच्छा भूल जाओ
लहरों में डूबना अच्छा है, डूबना न बिछड़ों के पास
अतीत याद करके यूँ न हो उदास।

मैंने कहा था दोस्ती भी न करना उन्हें अपना समझकर
कभी जो तुम्हें कुछ न समझे तो उन्हें क्या समझाओगे
आग लगाएंगे कमजोरियां बता कर तुम्हारे करीबी को ही
बता न पाओगे हंसोगे भी रोओगे भी दर्द होगा न खास
अतीत याद करके यूँ न हो उदास।

मंजिलों को पकड़ना है तो चलते रहो यूँ ही लगातार
कोई जाए और लौट आये, है क्या किसी का कोई यार
आज जिनसे तुम्हारी खुशी है कल घोलेंगे नफरत का जार
बहुत पछताओगे रुका न होता, सोचोगे यही काश!
अतीत याद करके यूँ न हो उदास।

-प्रभात


सिर्फ तुम्हारे लिए, एक खुला पत्र


सिर्फ तुम्हारे लिए,
एक खुला पत्र
नोट: इसका किसी भी प्रकार से किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है।

तुमसे कोई रिश्ता नहीं। मन में असीम प्यार था कभी उड़ेल नहीं सकता था। क्योंकि तुम्हारी सादगी और भोलेपन पर किसी और का नजराना था। मेरे लिए तुम जैसे तब थे वैसे ही अब। कभी कभार लगता था कहूँ तुमसे कुछ। पता है नहीं सुनोगे लेकिन फिर भी लिखना तो अपना काम है ना। इसके लिए किसी ओहदे की जरूरत थोड़ी न है न ही किसी विरासत की। सबसे बड़ी बात न ही किसी रिश्ते का होना और वो भी तुमसे।


सुनो इस खुले पत्र को लिखने वाले पर यकीन न होना तुम्हारी गलती नहीं है। इस पत्र में कहने वाली बात पर भी यकीन न होना पढ़ने वाले की गलती नहीं है लेकिन जरूरी ये है कि बिना यकीन के भी कुछ लिखा जा सकता तो है। कितने अरमान थे तुमसे मिलने की, बातें करने की। साथ घूमने की, तुम्हें साथ लेकर चलने की। तुम्हें हर वक़्त खुश देखने की, तुमसे सब कुछ कह देने की। मैं नदी की तरह बहता चला जा रहा था मुझे पता था समुद्र में गिरना तो मेरी कला है। मैं गिरता गया और तुम मुझे गिरते हुए देखते रहे। सब कुछ तुमने देख ही लिया। हमारे साथ बहे भी। इन सबके बावजूद तुमने मुझे सोचा कि मैं कभी ताड़ के साथ गुजर कर बहता हूँ तो कभी आम के साथ। तुमने ये भी सोचा कि पत्थर के साथ भी बहता हूँ और कोमल शैवाल के साथ भी। इसलिए ही शायद तुमने मेरे साथ बहना छोड़ दिया। इसलिए तुमने कुछ सपनों को सपनों में ही बदल दिया।

इमोशनल हो गए होगे। मत हो क्योंकि ये इमोशनलनामा नहीं ये तो मैं सर्कस का पार्ट निभा रहा हूँ पहले की तरह।
तुम मुझे यूँ ही बहते हुए छोड़ सकते हो लेकिन मेरे भाव का क्या, मेरे स्नेह का क्या। मेरे ऊपर तुम्हारी नटखट सी बातों से तो कभी चोट लग भी जाये तो तुम्हें माफ कर दूंगा। लेकिन इस तरह रूठकर खुद को अलग कर कहां तक ले जाओगे खुद को कभी वापिस लौट कर तो आओगे। मैं समुद्र में जाता रहूंगा खूब विस्तार करूँगा, कहीं रुकूँगा नहीं। तुम भी ठहरना छोड़कर बहते रहो। असीम शुभकामनाएं।

-प्रभात

बड़ी कशमकश सी है


बड़ी कशमकश सी है कि क्या लिखूं, कैसे शुरू करूं। लिखूँ भी या न लिखूँ या किसी चीज को दफन हो जाने दूं।
इसलिए जो लिख रहा हूँ अब मैं वो अपने लिए। अपने आपके लिए लिखूँ तो ही बेहतर है...
तो सुनो प्रभात तुम्हें मैं तुम से भी संबोधित कर सकता हूँ और आप से भी। तुम्हें मैं दुत्कार भी सकता हूँ और तुम्हें मैं गले से लगा सकता हूँ। तुम्हें मैं स्वीकार भी कर सकता हूँ तुम्हें मैं अस्वीकार। तुम्हें मैं लिख भी सकता हूँ और तुम्हें बिना लिखे भी बता सकता हूँ। बात करके भी और खामोश रहकर भी। केवल ये सब इसलिए क्योकि तुम मेरे अपने हो।



प्रभात नायिका रागिनी हो सकती है लेकिन नायिका के होने से कभी कभार सारा ब्रह्मांड शून्य सा हो जाता है। सारी दुनिया से अलग हो सकते हो। इसलिए एक तरफ नायिका तो अकेले ही है एक तरफ पूरी दुनिया जिसमें पशु, पक्षी, जमीन, पहाड़ और नदियां सब कुछ हैं। इसलिए आज तुम्हें अपनी नायिका से अलग अपनी जमीन तैयार करनी होगी।

तुम्हें अपने नाम से ही केवल नहीं प्यार है बल्कि तुम्हें तुम्हारे होने का प्रमाण तुमसे है। अपने आपके लिए बिताए समय के साथ खुद शब्दों के साथ विचरण करना ही याद हो सकता है। तुम्हारा अकेले चलना और हवाओं और पहाड़ों का समीप होना ही सब कुछ नहीं है। बल्कि यही जिंदगी का सच है कि खुद ही अकेले चलना। यानी इसमें ही अपने लिये निःस्वार्थ से काम किया जा सकता है। खुद से लड़ा जा सकता है और खुद के लिये जिया जा सकता है। इसलिए तुम ऐसे ही चलते रहो बेपरवाह तरंगों के साथ खुद को किसी वजह से न रोको बल्कि वजह को खुद से रोक दो। संसार की कोई भी वजह तुम्हें विचलित करे उससे पहले खुद से उसे विचलित करो। यहां चाहे नायिका के साथ उस भीड़ से भी अलग हो जाना पड़े जिससे तुम्हें दिक्कत हो तो हो जाओ। भीड़ के साथ न चलो भीड़ तुम्हारे साथ स्वतः चले तो समझो कामयाब हो...

-प्रभात
-जिंदगी का सचनामा


चाँद न आये कभी मगर तुम आओ


किस तरह तुमसे छिपकर एक अंजाम तक पहुंचूं
वहां तुम नजर आओ और कोई बीता लम्हा न आए
मेरी बेबसी को न देखो मगर इतना तो समझ लो
मैं चाहता हूँ चाँद न आये कभी मगर तुम आओ
हर उलझन की दीवारों को कैसे कहूँ कि गिर जाए
वो उलझन चली जाए और तुम्हारा मन पिघल जाए
तस्वीर में तुम्हारी चाहतों का जिक्र होता है बार-बार
रोता हूँ, मैं लौटता हूँ सहारे के लिए करीब हर बार
तुम्हारा आना-जाना तो सबकी नजर में भ्रम था यकीनन
मैं तो चाहता हूँ मेरा-तुम्हारा साथ यूँ ही बना रहे
कोई मुझसे पूछे कि तुम मेरे हो जाओ, मगर कैसे कहूँ
जिसे कहते हो लापता है पहले उससे पूछ के तो आओ
-प्रभात


वो हसीं शाम और तुम्हारा दस्तक


वो हसीं शाम और तुम्हारा दस्तक
शाम को आना और फिर यूँ ही हंस देना
एक अंजुरी होली का रंग फेंक देना
ऐसे ही जैसे धूप का पोखरा में सिमटना
और मेरे माथे पर लालिमा को फेंक देना
मैं अलसाया हुआ सा था मगर रंग गया
तुम्हारी उस लाल होठों की लाली में
और तुम्हारी बाहों में डूबने लगा
ऐसे ही जैसे सूरज का अस्त होना
और आसमां में डूबने लगना
तुम्हारे घुंघराले केशों के नीचे छिपना
तुम्हारे गाल के गड्ढे का बार-बार भरना
और मेरा उसे देख कर सिहरना
ऐसे ही जैसे चाँद का अंधेरे में उभरना
और काले मेघों का सिहर जाना
-बस यही प्यार है
प्रभात