तुम्हारी उम्र ढल रही होगी मेरी उम्र की तरह
हमारी यादें भी बिसर रही होंगी तरंगों की तरह
मगर रुके से हैं अभी कुछ जज्बात पुराने
वो गहरे हैं इतने खुलते हैं सभी के सामने
कौन है समर्पित भला जो तुम्हारी मांग भरेगा
मेरी किस्सों में कलंकित जो अभिमान करेगा
दिलों के ठहाकों में गर्मजोशी भले ही नाज हो तुम्हें
अभिनंदन है सलीके का बस जो प्यार करेगा
शायद तुम मुस्कुराओ हमेशा किसी आम की तरह
मगर वो खास होगा आये किसी मेहमान की तरह
उस क्षण मुस्करा दूंगा और कोई पूछेगा क्या हुआ
मैं कहूंगा कुछ नहीं बस तुम्हारी बात की तरह
-प्रभात
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