Wednesday, 8 March 2017

सियासत और प्यार

सियासत ए वफ़ा में क्या पता कब क्या हो जाए
कभी दंगा, कभी जुमला और कभी दगा हो जाए

मुहब्बत में थोड़े हलके से सवाल किए जाते है
क्या पता कब किसका किससे जुड़ाव हो जाए
कभी चीखो भी तो ऐसे जैसे बदलाव आएगा
संभालो ऐसे कि फिर से वहीं ठहराव हो जाए
कभी वोटों की गिनती हाथों से हो तो ऐसे हो
एक पर्ची तेरे नाम और एक उसके नाम हो जाए
कभी लड़ो तो ऐसे की मरहम लगाने को मिले
चाहे कितना भी बड़ा साम्प्रदायिक तनाव हो जाए
फेसबुक पर लाईक कर एक और दोस्त बनाओ
क्या पता कब कौन कैसे क्यों अनफ्रेंड हो जाए
-प्रभात



4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
    "आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. शब्दों का आदान - प्रदान एहसास दिलाता है हमें अपने होने का

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