तुम्हे मेरी खामोशी पढ़ने का तजुर्बा जब भी
होगा!
तुम्हे मेरी खामोशी पढ़ने का तजुर्बा जब भी होगा
तो ये दुनियां मुझसे मिलने को बेताब बहुत होगी
मैं निकल चुका होऊंगा हजारों का सहारा बन कर
तब जब दुनियां बेसहारा बनकर मुझे ढूंढ रही
होगी
घुमड़ते बादल के नजारे देख कर खुशी होती तो है
मालूम तुम्हे नहीं टपकने का मकसद क्या रहा होगा
जब हवाओं को बादल की ख्वाहिश का पता होगा
तो दुनियां स्वर्ग में होने का अहसास कर रही
होगी
एक चिंगारी से जला रहे है बहुत ऊंचे पेड़ छोटों
को
खुद जलकर उन्हें द्वेष कहाँ मालूम चल रहा होगा
हकीकत बयां होगा जब सामने बैठ कर दोनों के
तो बचपना एक सारे जुल्मों पर भारी पड़ रहा होगा
तुम्हारा प्यार मुस्कराते हुए तब जब जताने
आएगा
तब ये दुनियां मेरे न होने की वजह बता रही
होगी....
-प्रभात
तुम्हारा प्यार मुस्कराते हुए तब जब जताने आएगा
ReplyDeleteतब ये दुनियां मेरे न होने की वजह बता रही होगी....
खूबसूरत
शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-06-2015) को "योग से योगा तक" (चर्चा अंक-2021) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार
DeleteWonderful
ReplyDeleteThanks!
Deleteएक चिंगारी से जला रहे है बहुत ऊंचे पेड़ छोटों को
ReplyDeleteखुद जलकर उन्हें द्वेष कहाँ मालूम चल रहा होगा
खूबसूरत प्रस्तुती
शुक्रिया
Deleteबहुत खूब !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
www.manojbijnori12.blogspot.com
शुक्रिया!
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