किस राह पर चल पड़ा है यार मेरे तू बता दे
टूट कर तू बिखर रहा है
किस जगह पर जा रहा है यार मेरे तू बता दे
यकीं मुझे है इतना
यकीं मुझे है इतना
ये पूछोगे क्यों कभी
सूरज क्यूँ ढल रहा है
दोस्त होगे तुम तभी तो
एक बार पूछोगे
क्या चल रहा है
कभी कांटो में न फंसने वाले
इधर क्यूँ जा रहा है
किस राह पर चल पड़ा है यार मेरे तू बता दे
रात दिन वहीं रुका हूँ
जहाँ से कभी चला था
लौट कर क्यों आ गया तू
बोल तेरा क्यूँ लड़खड़ा रहा है
किस राह पर चल पड़ा है यार मेरे तू बता दे
वक्त की इतनी सी बात है क्या
जिसने मुझे सचेत किया है
राग दिया है वही पुराना
जिसे मैंने पहले छोड़ रखा है
किस गली तू जा रहा है यार मेरे तू बता दे
किस राह तू चल पड़ा है यार मेरे तू बता दे
-प्रभात
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जीना सब को नहीं आता - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत आभार ............
Deleteक्या बात है ......वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
DeleteThanks!
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