Monday, 15 June 2015

तो किसी और मौसम का इन्तजार हो रहा होता


विशेष:- मैं नकारात्मक सोंच वाला नहीं हूँ फिर भी स्थितियां नकारात्मक बातें लिखने पर मजबूर करती है परन्तु आप  सकारात्मक बनकर रहें!


तनिक सी बाधा होती तो पार मिल गया होता
मेरे सपनों में खोया यार मिल गया होता

कितना कम समय लगा इसे बाधाएं बनने में
अंतर्मन में मचे तूफ़ान की अतीव हवाएं बनने में

कोई एक दो सवाल हल अगर हो गया होता
मेरे आँखों को इंद्र का दर्शन हो गया होता

ज़रूरत है अब तुमसे मिल कर बाते करने की
तुम्हारी गोंद में छुपकर आँखे मलने की

मेरे मंजिल का रास्ता अब अगर खुल गया होता
तो रब भी मुझसे शरमा गया होता

खुशी के वजह की तलाश करने लगा हूँ
लौट कर केवल एक राह पर चलने लगा हूँ

दिन ढलते ही अगर सो गया होता
तो चांदनी रात का स्वप्न दर्शन हो गया होता

मेरे नज़र से यहाँ काली रातें ही दिख रही  
मंज़िल की ओर ले जाती हवाएं लौट जा रही

सूनापन में कोई हमसफ़र यार मिल गया होता
तो पाते मंजिल का बखान कर रहा होता

उम्र ढल रही है सूरज घर में छिपने लगा है
सुबह नाम पर से उनका ध्यान हटने लगा है

थोड़ा देर से बसंत चला गया होता
तो किसी और मौसम का इन्तजार हो रहा होता


-प्रभात 

2 comments:

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