कुछ अनकहे से.....
किसी शून्य से चले थे अनंत तक जायेंगे
एक–एक करके न जाने कितने जुड़ते जायेंगे
गणित की तरह जोड़, घटाना, गुणा, भाग किये
जायेंगे
घटेंगे भी और सांप सीढ़ी की तरह नीचे आयेंगे
परा जाना तो ऊपर ही है एक न एक दिन चले
जायेंगे
कितने चाहने वालों को वो प्यार न दे पायेंगे
क्योंकि जिसे चाहेंगे उससे वो प्यार न ले
पायेंगे
न किसी को बता के आये थे न किसी को बता
जायेंगे
अपनी चाहत का इज़हार शायद ही किसी से कर पाएंगे
खुद को चाहेंगे तभी तो चाहत समझ पायेंगे
अँधेरे से चले थे दूर प्रकाश तक जायेंगे
कई बार लड़खड़ायेंगे और एक बार गिर जायेंगे
किसी तरह अब उठ गए तो फिर संभल जायेंगे
और कभी गिराने वाले अब मेरे साथ होते चले
जायेंगे
मेरी अनुपस्थिति में वे सारा श्रेय ले जायेंगे
हकीकत की खोज में अन्तरिक्ष तक चले जायेंगे
जो रास्ते में मिलेगा सब कुछ छोड़ जायेंगे
सब कुछ गवां कर अगर सफ़र को याद करेंगे
निश्चित ही कुछ बीते पल होंगे जिन्हें चाहकर
भी न पायेंगे
वरना अगर गवांना न हो कभी कुछ तो लाईनें कहा
लिख पायेंगे...
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-06-2015) को "बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं" {चर्चा अंक-2006} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
तहे दिल से आभार!
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteजी आपको बहुत-बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteSorry...don't understand your language, but you have a nice blog.
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