“सम्मान रहा न ईमान रहा, बस बेचने वाला इंसान
रहा
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दौलत घर की और खुदा की, बनकर केवल अभिशाप रहा
पानी के प्यासे जीवित प्राणी को, बस आंसू का
अहसास रहा
हो रहे जगत में प्रतिस्पर्धा, बाहों का बाहों
से दुराव रहा
न रहा प्यार किसी कोने में, बस वैलेंटाइन वाला
दिन रहा”
-प्रभात
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