देश में अब क्या
इतने ही स्तम्भ हैं? लोकतंत्र या अँधेरतंत्र है?
अपनी फाइल में
हिन्दू मुस्लिम
और सच को झुठलाने
वाली
झूठ को सच बताने वाली
सरकारों की
कठपुतली है
लाठी लेकर भी
लड़खड़ाती है
वो अपने को पुलिस
बताती है
भड़काऊं बयानों के
घेरे में
वो चंद महीनों की
रैली में
हिन्दू मुस्लिम
करता है
योद्धा बन हिंसा
भड़का कर
राजमहलों में
सोता है
अधिकारों पर बात
करे कोई कैसे
वो इसकी भी सजा
देता है
जज, पत्रकार, पुलिस सबको
ये नेता खरीद
लेता है
स्वतः संज्ञान का
तीसरा खम्भा है
बेबस लाचार और अब
अंधा है
सर्वोच्च कहलाने
वाले को
सुनवाई का माहौल
नहीं मिलता है
ये देश में कैसा
अब ओहदा है
तारीख पे तारीख
के चक्कर में
हिंसा ही होती
रहती है
और उनकी सरकारी
लाचारी देखो
सुनवाई न करने का
बड़ा धंधा है
सवाल पूछते
स्टूडियो में
गजब के दर्शक
गढ़ते हैं
पत्रकारिता नहीं
हो पाई ढंग की
जिससे आम चूसने
को कहते हैं
कैमरे में लिट्टी
चोखा
अखबारों में कपड़े
का लेखा
दिन भर
हिंदुस्तान पाकिस्तान
रात को हर घर
..हर हर पर
जयकारे भी लगवाते
हैं
फील्ड में जादू न
चला पाएं तो
जुबानों से गोली
चलवाते हैं
वो अपने को
मीडिया बताते हैं
अब बची रही जनता
तो
उसका क्या ही
होना है
रोजगार मिले या न
मिले
पकौड़ा किसी को
तलना है
दंगा होगा तो
पहले ही
जय श्री राम कहना
है
और नहीं तो धर्म
खतरे में
हिन्दू-मुस्लिम
करना है
जरूरी नहीं पढ़ना
लिखना आना
गाली-गोली चलाना
आना है
लगाकर आग घर-घर
में
घर का मुर्दा
फूंकना है
बस इतना ही तो
आना है
बटन दबे तो उसका
मतलब निकले
ऐसी सरकारों को
लाना है
सरकारें तो एक
बहाना है...
हमें और आपको आना
जाना है...
#प्रभात
Prabhat
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