Monday 25 May 2020

कोरोनावाणी- चूड़ियांहिन


पहली फ़ोटो देखिये। दिल्ली के इस दृश्य को देखिये। एक आदमी घर- घर जाकर अंडरवीयर, तौलिया और महिलाओं कपड़ों को पहुंचा रहा है। अक्सर ऐसा दृश्य गांव में तो दिख जाता है कभी कभार पर शहरों में दिखना कोरोना के दौर में ही सम्भव हो पाया है।
दूसरी फ़ोटो गूगल से मिली है। इसमें जो औरत है उसे हम चूड़ियांहिन बोलते थे। बचपन में ये घर घर दौरी (लकड़ी की टोकरी) में चूड़ियां बेचने के लिए जाया करती थीं। दादी जी के सामानों से लेकर बच्चों तक यानी हम लोगों के सामान उस दौरी में मिल जाया करते थे। आज भी चूड़ी बेचने वाले गांव में फेरी लगाते हुए मिल सकते हैं लेकिन वो महिला नहीं, बल्कि पुरुष होगा और पैदल नहीं वो साइकिल पर बने बनाये डिब्बे में बंद लेकर बेचता दिखाई देगा। अब बाजारीकरण ने स्वरूप को बदल दिया है। हमारे यहां चूड़ियांहिन का चेहरा कुछ अजीब सा था पान खाना या गुटका चबाने वाली महिला की तरह। खैर
चूड़ियांहिन की बात कर रहे हैं लेकिन हमारी क्या रुचि होती थी। हमें करधन पहनने का शौक चढ़ता तो दादी से जिद करके ले लेते थे। नहीं तो चूड़ियांहिन खुद ही सब कुछ देकर जाया करती थीं। जिसमें बहुओं के लिए अलग प्रकार की बिंदी, टिकुली और साजो सज्जा के सामान और दादियों के लिए अलग प्रकार की। और हम बच्चों के लिए अलग प्रकार के सामान।

गांव की दोपहरिया में चूड़ियांहिन एक चूड़ी बेचने वाली महिला नहीं हुआ करती थीं। उनका सम्बंध सामाजिक स्तर पर मजबूत होता था, जहां जाती थीं उन्हें पता होता था कैसे किससे और कितना बात करना होता था। लंबी दूरी तय करते हुए थक कर वहीं बैठती थीं जब दुवार पर प्रवेश होता था। फिर दादी जैसे बुजुर्ग लोग उन्हें पानी पिलाते थे। और फिर हाल चाल भी पूछा जाता था। यहां तक कि कहां थे अब तक, बहुत दिनों बाद आये। क्या मार्केट ने नया आया। क्या पिछली बार से इस बार नया लायी हैं। क्या बहू को सूट करेगा वगैरह वगैरह और हम बातों को सुनने के लिए ही पहुंच जाया करते थे। शायद हमारी यानी बच्चों के व्यवहार पर भी बात हो ही जाया करती थी। कुल मिलाकर व्यापार और सामाजिक संबंधों का बड़ा महत्व दिखता था।

अब लॉकडाउन में इस तरह आदमी को ठेला लगाए हुए देखकर अकेले बस यही लगता है यहां वो आदमी भी नया है और लोगों से सामाजिक सम्बंध तो जीरो है ही। तो ऐसे में व्यापार कहां से होगा और समाज में वो खुशियां कहां आएंगी। आज तो वैसे भी व्यापार का अपराधीकरण हो चुका है। वैश्वीकरण तो है ही।

#कोरोनावाणी

#प्रभात

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