Monday, 25 May 2020

फेसबुक पर आने वाला हर शख्स पत्रकार है।


फेसबुक पर आने वाला हर शख्स पत्रकार है। आपको अपनी अहमियत और मर्यादा का पता होना चाहिये। आपको नारद मुनि से सीख लेनी चाहिए। भाषा-शैली और वाद विवाद यहां तक कि संवाद की उच्चतम सीमा तक पहुंचना लेकिन स्पष्टवादिता और सहिष्णुता के साथ।

आप बेबाक हैं लेकिन आपकी बेबाकी में खून खौलता है, आप निराशा के बीज से अपने दूसरों को निर्जीव करते हैं। आप अपनी हास्य के माध्यम से बारम्बार रावण का अभिनय करते हैं। आप अपने अपमान का बदला लेने के लिए ऐसे तड़पते हैं जैसे द्रौपदी लेकिन उसके जरूरी नहीं कि हर कोई दुर्योधन ही हो। आप इंसान में मजहब की लाइन खींचते हैं तो खास मकसद होता है कि उसके अस्तित्व को ही चुनौती दे दूं। आप गरीब-अमीर, सवर्ण-पिछड़े, हिन्दू-मुस्लिम, पढ़ा लिखा- अनपढ़ के बीच ऐसी रेखा खींचते हैं कि वह लक्ष्मण रेखा हो जाती है नवजातों के लिए यानी हर अनजान के लिए। हर मासूम के लिए।

फिर आप अपने जिम्मेदारियों से भागने लगते हैं ठीक उसी तरह जैसे भीष्म अपनी प्रतिज्ञा की ढाल पर भरी सभा में चीरहरण के गवाह बनते हैं, ठीक उसी तरह जैसे द्रोणाचार्य, युद्ध में अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य से लड़ने पहुंच जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे शांतनु गंगा के वसीभूत होकर राजा का कर्तव्य भूल जाते हैं और महाभारत हो जाता है।

हमारे सामने हो रही मौतों को इसलिये हम चर्चा नहीं करते क्योंकि वो असहाय, बेसहारा और प्रसिद्ध नहीं होता, हिन्दू मुस्लिम एंगल नहीं मिल पाता क्योंकि वह सत्ता या विपक्ष इनमें से किसी का नहीं होता लेकिन लिंचिंग तो हर रोज ही होती है। रेप तो हर रोज ही होते हैं। हैवान इंसान को हर रोज मारता है। वर्दी खूनी हर रोज हो रही है। लेकिन ये सब हम वैसे ही भुला देते हैं जैसे पांडवों व कौरवों के बीच हुए युद्ध में सैनिकों का हर दिन कटना, मरना। चाहे वे धर्म का साथ दे रहे हों चाहे वे अधर्म का।

सबसे ताकतवर इंसान इस संसार में बहुत लंबी आयु प्राप्त करता है। ताकतवर मतलब वही डार्विन ने जैसा कहा था। वह अगर लड़े भी तो हत्या तो कमजोर का ही होगा। उसके लिए अदालतें जैसी चीजें भी कुछ नहीं होती उन्हें भी साथ देना पड़ता है। उसके लिए विधि बनते हैं और विधि बदलते भी हैं। उसको प्राण देने के लिए संसार के सारे वैद्य आस पास घूमते रहते हैं। ये ठीक वैसे ही है जैसे भगवान अवतार लेते हैं किसी को मारने के लिए। चाहे वो कृष्ण को लें या राम को। हां आप चाहें तो रावण को भी ले सकते हैं। लेकिन इसमें भी 2 ताकतवर के बीच केवल एक ही ताकतवर जिंदा रह सकता है।

अंत में बस इतना ही कि मौत तो सबका ही होना है। अपराध तो हर मौत पर है। गुनाह तो हर रोज होता है। सजा तो हर दिन मिलता है। चर्चा तो हर रोज होती है। सोचता तो हर कोई है। निशाने पर किसी न किसी को आना है। प्रायश्चित सबको करना है। सभी के प्रकार हैं और सभी की अपनी अपनी व्याख्या। लेकिन सर्वश्रेष्ठ तो वही है जो ताकतवर है उसी के विचारों का भार होगा, हां ये अलग बात है कि कमजोर भी अपने विचारों से मात देने की उसे कोशिश करे लेकिन हो सकता है वह एक दिन असफल ही हो जाये, क्योंकि वह एकलव्य भी बन सकता है और सूतपुत्र कर्ण भी।

आप अगर वास्तव में जीना चाहते हैं तो ताकतवर और कमजोर बनने के बीच में जीने की कोशिश कीजिये। आप अपने विचारों में कट्टरता का लोप कर दीजिए। आप सहनशील होइए और गंभीर भी। आप गुस्सा करिए मगर अच्छी सोच के साथ, जिससे किसी अच्छे का अहित न हो। आप ज्ञान की रेखा खींचकर बंटे मत रहिए। आप ज्ञान लीजिये दोनों तरफ की तराजू से तौलिए जिसका पलड़ा भारी हो उसे संतुलित करिए केवल ज्ञान के प्रकाश से, केवल खोज से। फिर इस पलड़े में और उस पलड़े में जो भारी हो उसे भारी महत्व दें लेकिन यह भी ध्यान रखें संतुलन करना आवश्यक है इसलिए जितना अधिक भार दूसरे की तुलना में पहले वाली की है उतना ही उसे फिर से ज्ञान से ही संतुलित कीजिये। देखिये यही न्याय का सिद्धांत है। इसी से कर्म और जन्म सुनिश्चित है। कमजोर यानी कम भारी वाले पलड़े पर बैठे इंसान/हैवान की मृत्यु को आप मत सुनिश्चित कीजिये। वो अगर संतुलित करने पर आपसे संतुलित नहीं हो पा रहा तो वह एक्सक्ल्यूड हो ही जायेगा।

#प्रभात

Prabhat

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