मैंने उसे आज
काफी करीब से देखा
उसके साथ होकर नहीं
उसके शब्दों के करीब होकर
उसने कहा कि मैं
तुम्हें प्यार करती हूँ
उसने कहा कि मैं
तुम्हारे एक बार कुछ बोलने भर से नींद ले सकती हूँ
उसने कहा कि मैं
बार बार कुछ कहती हूँ और तुम चुप रहते हो
.....
विडंबना है कि
मैं जिसे 'उसे' कह रहा हूँ
वे नायिकाएं हैं
उनमें से कुछ हैं
जो मेरी तस्वीरों को देखकर ही हक जमा बैठीं
कुछ हैं जो मेरे
बोलने के अंदाज पर फिदा हो बैठीं
कुछ हैं जो मेरी
हर उस चीज से प्यार करती हैं जिसे मैं प्यार नहीं करता
अब सवाल यह है कि
मैं नायक हूँ ?
......
नहीं, क्योंकि मैं
कहानीकार हूँ
इस कहानी में असल
नायिका कोई एक है
मैं उसके करीब
नहीं हूँ न तो शब्दों से और न ही उससे
फिर इसलिए ही तो
ढूंढ़ता हूँ किरदार
......
वो किरदार मिल
चुका है, लेकिन उसे
लिखूंगा नहीं!
क्योंकि प्रेम
परिभाषित न तो इसके पहले था और न अब!!
और शायद इसलिए
लिखना पढ़ना बोलना सब गुनाह है
हां देखना है
बस... देख रहा हूँ...
#प्रभात
Prabhat
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