Monday, 25 May 2020

बहुत अंधेरी रात और गलियां बिल्कुल सूनी


बहुत अंधेरी रात और गलियां बिल्कुल सूनी हैं
स्ट्रीट लाइट्स बंद पड़े हैं
शहर में बाहर बस एक लंगड़ी कुतिया है
कुछ दुबले पतले जानवर भी जुगाली कर रहे हैं
ये उसी स्वप्न की बात है जिसमें मैं दुनिया में अकेला था
 
आज वही सब देख रहा हूँ, क्या आप भी देख रहे हैं?

दिन भर भूख की चिंता में माँ के पास चावल का एक कटोरा है
उसके सहारे पलते उसके 2 नन्हें बच्चे दूध पीने को व्याकुल हैं
खपरैल का मकान पक्का तो है मगर उसमें अभी पंखा नहीं है
हां बिजली के तार हैं मगर उससे जलते 40 वाट के पीले बल्ब हैं
लू के चलने के बीच पसीने से तर मुंह पर आँचल का टुकड़ा है
दुपहरिया में मजदूरन की ऐसी बेबसी और लाचारी जो कभी एक बार दिखती थी

आज दिन रात देख रहा हूँ, क्या आप भी देख रहे हैं?

मर्द रिक्शा चालक शहर में फंसा बहुत दूर तक अब भी अकेला है
छूट गया है साथ संबंधों का मानो अलग थलग रहने का झमेला है
उसके पास तो घर भी नहीं, ना ही दाना पानी है
गुजर बसर के चक्कर में यही नई कहानी है
इतनी दूरी पैसों और जिस्मों की कभी टूटते इश्क़ में दिखी थी

आज ये सब घर-घर देख रहा हूँ, क्या आप भी देख रहे हैं?

दुकानों का बंदीकरण और शहरों की गति का रुकना
मानों गांवों तक हवाओं का ठहरना और साँसों का रुकना हो
हां, क्योंकि बदली हवा का एहसास कमरे में बंद है
हम तो लगातार एक कोने में बंद हैं
दवाओं से लेकर दुआओं तक सब खाली खाली है
सब जगह ताला बंदी है जैसे नाले बीच में एक पतली पगडंडी है

सबको अवसादग्रस्त देख रहा हूँ, क्या आप भी देख रहे हैं?

#प्रभात

Prabhat

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