ताला
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किसी भी प्रकार
का ताला उसके मन की आवाजाही को नहीं रोक पाता वो तो बस गुस्सा, द्वेष, मनमुटाव, खींझ, आह, दर्द, नफरत की बयार में
खुद को पाता है। आजादी की भावना पनपती है। अगर वह दोषी नहीं है तो जेल में बंद
कैदी कभी सुकून से अपने अच्छे पलों को जी नहीं पायेगा वो तो बस उसका विद्रोह करने
के लिए तैयार रहेगा। इसी प्रकार किसी इंसान को कोई बंधक बनाए, मारे पीटे
अत्याचारों की गंगा बहा दे, लेकिन अंत सांस तक वो बस उससे बदला लेने की सोचेगा।
वो चाहेगा कि उसे सबक सिखाएं। इंसान अपने स्वार्थ के लिए अपने लिए चहारदीवारी भी
बना लेता है।
तस्वीर-गूगल साभार |
उदाहरण के लिए,स्वार्थी मनुष्य
चाहे वो लॉक डाउन से या क्वेरेंटाईन से मजदूरों के ऊपर वार करके अपनी सुरक्षा कर
रहा हो। या फिर अपने आपको बचाने के लिए वो किसी और पर बंदिशें लगा रहा हो, चाहे वो पत्रकार
हो, चाहे वो नर्स हो, या फिर चाहे वो
डॉक्टर हो। मेरा मतलब जो उसकी सेवा करने के लिए विवश हो अपनी और दूसरे की इच्छा
दोनों के अनुरूप भी हो सकता है ये। अगर ऐसा होता है तो ये अमानवीय की परिभाषा को
तय करता है। आप अगर जिम्मेदार नागरिक हैं तो बस अपने स्वार्थ के चलते दूसरों पर
ताला नहीं लगा सकते। अगर वो आपकी जान नहीं बचा सकता तो आप जैसे 10 लोगों की जान तो
बचा ही रहा होगा।
लेकिन हमारे वेद, पुराण, कुरआन सब फेल हो
जाते हैं जब मनुष्य अपनी जान की परवाह के लिए जिम्मेदारी को न समझते हुये आप पर
ताला यानी अंकुश लगाता है। यदि ऐसा न हो तो हम बड़ी से बड़ी आपदा से निकल सकते हैं।
ताला लगाने वाला आपका अपना सगा ही होता है जो मोह की संज्ञा में बांध देता है, इसमें आपके
गार्जियन आपका मकान मालिक या आपका रिश्तेदार या फिर आपका मित्र भी हो सकता है। वह
अपनी सुरक्षा के लिये या यूं कहें अपने मोह से आपकी सुरक्षा के लिए तमाम जतन करता
है। उस जतन में एक्सट्रीम लेवल में आप पर दबाव से ताला लगा देता है जिससे वह असहाय
हो जाता है। यकीन मानिए आप अपने बच्चों को अगर इसलिये सेवा करने के मौके से दूर
करेंगे कि उसकी जान बची रहे तो उसकी जान बहुत जल्दी ही चली जायेगी। ठीक उसी प्रकार
ताला लगाकर किसी को रोकना वो चाहे आपका कितना सगा ही क्यों न हो, किसी चीज से
रोकने की विधि नहीं है।
अगर आपको ताला
लगाना हो तो असल जिंदगी के स्वरूप को समझना होगा। आपको समझना होगा कि ताला लगाना
है तो आप अपने पर लगाएं। जहां भी आपको नियम कानून बनाना है वो अपने आप के लिए खुद
बनाएं। आप को जागरूक होना है। दूसरों को करना है लेकिन इसके लिए ताला का विकल्प
कभी नहीं होता। अंकुश लगाने के उद्देश्य में खुद की स्वतंत्रता और पराधीनता छिपी
है आप किसी और की स्वतंत्रता छीन नहीं सकते। आप किसी को गुलाम भी नहीं बना सकते।
अगर इस मानसिकता का बोध हर किसी को हो जाये तो वह खुद अपने दायरे में रहेगा। और जब
दायरा अपने आपको हर किसी को पता होता है तो दीवार या चाहरदीवारी अपने आप ही बन
जाती है। लक्ष्मण रेखा अपने आप खिंच जाती है। आप खुद अपनी परवाह और दूसरों की
परवाह करते हैं और फिर ये जो ताला दिखता है ये ताला केवल मन का ताला होगा, किसी दुकान का
ताला नहीं होगा।
#प्रभात
Prabhat
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