Tuesday 1 June 2021

काश सब अच्छा होता

 इन आंखों में अजब सी कशमकश है

काश सब अच्छा होता

उदासी हर तरफ है, लाशें हर तरफ हैं

काश कोई किनारा मिलता तो अच्छा होता

बढ़ी बेचैनी और झिलमिलाहट जिंदगी में

सब तरफ पसरा सन्नाटा आंगन में

महफूज कौन है, किसका साया है ऊपर

काश सब कुछ न उजड़ता तो अच्छा होता

प्रतिद्वंद और प्रतिकार में जी रहे हैं वो

किसी की मौत का इंतजार कर रहे वो

उन्हें मालूम नहीं कि जन्नत में कौन है एकाकी

काश कोई तो निहार पाता तो अच्छा होता

ये अंधेरा है, मालूम नहीं चांद भी देखेगा

अस्तित्व की बात है कौन अब रहेगा

सूरज तो निकलना बहुत दूर की बात है

काश अंधेरा ही छटता तो अच्छा होता

काश सब अच्छा होता!

#प्रभात

प्रभात

(मां के बीमार होने पर और बस में बैठकर लिखी पंक्तियां)

7-5-21

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