Tuesday 1 June 2021

मीडिया पर सवाल

सवर्ण मीडिया, बैकवर्ड मीडिया, धार्मिक मीडिया और बहुजन मीडिया सब लोग सुनें- ये सब आपने बनाया है, पत्रकारिता में इसका कोई स्थान नहीं होता। मैं इसका पहले से ही विरोध करता आया हूँ। मीडिया और मीडियम दोनों का मतलब समझिये और उसी के आधार पर काम करिए। वरना सच तो यही है कि फोर्थ पिलर बंटा हुआ है। बहुत नफरत लिए।

अगर आप वास्तव में पत्रकार हैं तो आप दिन रात किसी न किसी काम को लेकर खोए रहेंगे। किसी आम लोगों के काम को लेकर। काश मैं उसका ये काम करा पाता। आप जी जान लगाकर कम से कम उतना कर सकते जितना आपसे उसे हेल्प चाहिए। लेकिन बात ये है कि आप के पास नौकरी और उसके एसाइनमेन्ट के बाद शायद आप खाली ही नहीं रहते और फिर किसी और से सोशल होते ही नहीं। क्योंकि ज्यादा नजदीकियां बनाकर रखेंगे तो आपके साथ दिक्कत ये है कि कभी आप से वो काम लेने की बात करेगा। लेकिन आप उन्हें। फेवर तो दूर अपना रेपुटेशन जिसमें आप समझते हैं वही बनाने में लगे रहते हैं। आप जरा भी ध्यान या उसका काम नहीं कर सकते। आप सिर्फ उसकी बात की सुनकर एवाइड करेंगे या फिर उसके दुख में एक शब्द बोलकर चुप हो जाएंगे। आप चाहें तो उसकी खबर लगवा सकते हैं अगर उसके साथ कुछ गलत हुआ है। आप चाहें तो उसकी बात को एज ए मीडियम खुद भी उठा सकते हैं और आप चाहें तो अपने कॉन्टेक्ट्स से उसे उसका हक दिला सकते हैं उसके लिए न्याय दिला सकते हैं।

लेकिन बात ये है कि आप समारोह की खबरें निकालेंगे। आप तो ऐसी खबरें निकालेंगे जहां आपको पैसा मिले, ख्याति मिले, प्रतिष्ठान में वाह वाही और बुके सम्मान मिले। आप तो खुद मना करेंगे। उसकी खबर को रोक देंगे। और रिपोर्टर तो कहना ही नहीं चाहता क्योंकि उसे डांट मिलेगी या फिर उसे उस काम में मेहनत करने से उसका सम्मान चला जायेगा। ये भी कहा जायेगा ये तो दूसरे का काम है। आपका अपना काम होगा तो आप तड़पने लगेंगे और फिर अगर आप किसी तरह उस मीडिया से बाहर हुए तो आपकी आवाज को उठाने वाला भी कोई नहीं रहेगा। ये फेसबुक पर एडिटर, रिपोर्टर और बड़े बड़े जगह की प्रोफाइल लगाकर केवल खुद की वाहवाही करवाना पत्रकारिता बिल्कुल भी नहीं है।

और अगर आप किसी का ध्यान नहीं रख पाते और किसी की इमेरजेंसी में सहयोग नहीं कर पाते तो आपका एडिटर, रिपोर्टर होना तो नाम की बात है दरअसल आप क्लर्क और चपरासी हैं उसमें कि आपने उस प्रतिष्ठान में अपने लिए कोई स्पेस नहीं पाया है। सोचकर देखिये आपके पास किसी का इनबॉक्स आये कि मेरी मदद कीजिये, ऐसी बात है...

आप उसके पोस्ट को सीन करके देखकर निकल लेते हैं। रिप्लाई तक देना उचित नहीं समझते या फिर उसके रिप्लाई में दुख व्यक्त करके निकल जाने में अपना भला समझते हैं तो क्या इसी काम के लिए कोई आपसे संपर्क करता है। या फिर आपको सूचना मिली कि आप शायद किसी के बुरे  दिनों में काम आ सकें लेकिन आपने तो उसे अनसुना कर दिया क्योंकि आपका लेवल आपके हिसाब से उसके काम लायक नहीं है। यकीन मानिए आपके साथ भी कभी कुछ होगा तो आप तड़पेंगे। आपको तो कोई मिलेगा ही नहीं। आप इस फील्ड अगर मजे लेने या पैसे कमाने के लिए आये हैं या फिर सरकारी नौकर बनने तो आपमें और फिर पत्रकार में बहुत अंतर है। आप पत्रकार नहीं हैं। न ही ऐसा शब्द आप पर शोभा देता है।

इसलिए मेरे पत्रकार दोस्तों आप अपनी जगह पहचानिए हो सकता है आपके काम कोई आ जाये या आप ही किसी के काम आ जाएं।

मतलब आंखों को गड़ा कर रखिये, ऐसा कुछ करिए जिससे आपकी आंखों के सामने कुछ गलत न हो सके। हां आपको इन समस्याओं को देखकर कभी कभार नींद नहीं आएगी। लेकिन जब आएगी तो बड़ी तसल्ली मिलेगी। जिंदगी का सुनहरा दिन होगा। मुझे आम लोग चाहिए, मुझे ओहदा देखकर आभासी दुनिया मे या रियल दुनिया में मित्रता करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं है। आप चाहें तो मुझसे अलग हो जाएं ...

"इन सबसे अलग बात एक और कि आप दलित हैं और दलित आपके लिए केवल मायने रखता है। अगर आप ब्राह्मण हैं तो आपके लिए केवल सवर्ण मायने रखता है और आप ओबीसी हैं तो आपके लिए बैकवर्ड मायने रखता है। अगर आप इस बेस पर पत्रकारिता करने में लगे हैं तो आप पत्रकार नहीं घनघोर जातिवादी चोला पहने हैं जिसमें इंसानियत नहीं बल्कि एक विशेष जाति के खिलाफ घृणा हैं। यही  घृणा ही आपको पत्रकार बनने से रोकता है। क्योंकि आपके लिए एंगल केवल जाति और धर्म होता है।"

#प्रभात

Prabhat

13-6-20

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