पहली और अंतिम बार,
जब तुम्हें खत लिखा था
कहा था कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
तुमने पूछा था क्यों?
"बस यूं ही" मेरे पास जवाब नहीं था
क्योंकि मैंने ऐसे पहली बार झूठ बोला था
तुम्हें याद तो होगा
वो पूस की रात जब तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराया था
और मैं चादर ओढ़े सिसकियां ले रहा था
तुमने जोर से चादर खींच ली थी
मैं डर गया था, तुमने
एक कहानी सुनाई थी
चींटी और हाथी की और फिर सो गए थे
तब से आज तक तुमने 'हां' नहीं
कहा
तुम्हें याद तो होगा
जब मैं सोचकर मिला था कि शायद अंतिम मुलाकात है
मैं उस पल को कभी बीतते नहीं देख सकता था
लेकिन जाते वक्त तुमने इतना स्नेह दिया
कि उसी बदौलत यह कलम चलती है
तुमने हाथ हिलाकर मुझे विदा किया था
मैं तुम्हें देख रहा था, गाड़ी
आगे बढ़ चुकी थी
थोड़ी देर में सब कुछ ओझल हो चुका था
तुमने कभी मुझे फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा
लेकिन तुम्हें, मैं
हर पल देखता रहता हूँ
उसी आस से, उसी राह पर, उसी
ख्वाब से...
#प्रभात
Prabhat
नोट1... यह पूरी रचना मुझे दोबारा लिखनी पड़ी, पहली
बार जो लिखा था वो अचानक से गलत कमांड देने से सब उड़ गया। उसमें भाव लगभग ऐसे थे।
पहली बार लिखी गई बातों को स्मृतियों को आधार बनाकर दोबारा लिखना पड़ा है। जिससे यह
रचना थोड़ी कमजोर हो गयी है।
नोट2... स्केच वाली यह तस्वीर गूगल से मिली है। मेरा इस
पर कोई अधिकार नहीं है।
14-6-20
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