बस तुम्हारा ही इंतजार था
तुम आ ही गए
शीतलता का एहसास कराने
तरसती बूंदों से भिंगोने
जिनसे हमने छुआ था एक दूसरे को
इसी तपती दोपहरी के बाद
मिले थे माटी की खुशबू के साथ
जिसमें हमारे पसीने की कुछ बूंदे थी
कुछ प्रेम के आंसू
और कुछ बूंद
गगन से छूटा हुआ जहाँ देखते ही
तुम आ ही गए
उसी समर्पण के साथ
मेरे पास आँखों से बहुत दूर
पर दिल के पास, मेरे साथ
चलते हुए लगता है
चल रहा हूँ साथ तुम्हारे
तुम्हारी मधुर आवाज के साथ
भींगे पत्तों को छुआ लगता है
तुम आ ही गए
मेरे प्रेम को जीवंत कराने
तभी तो चला जा रहा हूँ
मृग की भांति ही
पर अब वो खूबसूरत अदा
नाभि का इत्र
सब जैसे मेरे ही सिरहाने है
तभी तो अब मैं सोऊंगा,
कुछ अच्छे ख्वाबों के साथ
फिर कहूँगा यहाँ भी
तुम आ ही गए
-प्रभात
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत का पहला स्वदेशी स्पेस शटल RLV-TD सफलतापूर्वक लॉन्च " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
ReplyDeleteशुक्रिया वाहवाही के लिए
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