तुम मुझे देख कर कुछ न कह पाये मैं तुम्हे देख कर कुछ न कह पाया
ये फैसला वक्त का वक्त पर छोड़ मैं अभी तक तुम्हे न लिख पाया
गूगल साभार |
जानते हो उस दिन क्या हुआ तुम आयी हवाओं के चलने की तरह,मुस्कराती हुयी मंद गति से शीतलता का एहसास, छू लेने की तरह,कुछ देर रुक कर उड़ गयी तुम, वो बेचैन बादल के झोकों की तरह,मैं जब खिड़की से उस वक्त झाँका, लगा तब, तुम अभी बुलाओगीमैं जब तुम्हारे पीछे आया तो तुम्हारी कमी देख खुद को तनहा पायाअंतिम मुलाकात में तुम्हें देख कर, कुछ दूर आकर, तुमसे ही न मिल पायाहै अफ़सोस मुझको भी और तुमको भी, हमारी पसंद ही खुद को जुदा पायालगता है व्यर्थ में, सारा जहाँ तुम्हारा इंतज़ार करता हैतुम वो शाम हो अगर वहां की तो मैं तो हूँ तुम्हारे बाद कामालूम तुम्हे सब कुछ था और मुझे भी, पर तुम्हारी ख्वाहिशे न जान पायान हुआ हासिल कुछ और मगर, तुम्हारी तरह ही खुद को गाता हुआ पाया-प्रभात
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