खुला ख़त
रागिनी,
पिछले कुछ दिनों से मेरा ख़त सुर्ख़ियों में है और इसलिए तुम्हारा ख़त भी सुर्ख़ियों
में ही है. तुम्हे पता है रागिनी तुम्हारी याद मुझे तब आयी जब मेरा ख़त सुर्ख़ियों
में आया. यूँ तो मेरा ख़त अगर अच्छी तरह से हर किसी तरह के सोंच रखने वाले किसी अच्छे
इंसान के गोंद में जाती तो आज तुम्हे लिखना न पड़ता. परन्तु ये ख़त बहुत ही संकीर्ण
मानसिकता वाले कुछ ही लोगों तक सीमित होकर रुक गयी.
रागिनी वह दिन याद है जब मैंने तुमसे मिलकर कहा था कि तुम पर कुछ लिखने का मन
कर रहा है और लिखकर तुम्हे एक डायरी देना चाहता हूँ जब मैंने तुम्हे डायरी लिखने
का साहस कर रहा था तो मुझे इतनी मुश्किल नहीं उठानी पडी थी जितनी की आज कर रहा
हूँ. तुम्हारी डायरी जिसे मैंने कहा था वह तो फटा हुआ बस कागज था न उसमें कोई साज
सज्जा था न ही कोई डायरी सा प्रतिबिम्ब उसके लिए मैंने इतनी मेहनत भी न की थी क्योंकि
मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ था पर लिखने के लिए मेरे पास कुछ था ही नहीं. रागिनी
वहां तो तुमसे कुछ रिश्तों की परिभाषाओं का भी जिक्र किया था.
मैंने जब तुम्हे पकड़ाया था वह पन्ना तो उसके पहले अपने पास एक कॉपी रख लिया
था. वह प्रेम पत्र था किसी और के शब्दों में परन्तु जितना समझदार तुम लगे थे उतना
समझदार शायद मुझे कहीं जाकर ढूँढने पर न मिले. तुमसे जो मुझे मेरे चिट्ठी का जवाब
मिला था वह किसी और के लिए बेहद निराशाजनक था परन्तु मेरी बात जितना तुम अच्छे से
समझ सकते थे उतना ही अच्छा मैं भी. मुझे तो बहुत ही अच्छा लगा था शायद मैं भी तुम्हारी
जगह पर होता तो मैं भी ऐसे ही प्रतियुत्तर देने की कोशिश करता. तुमसे करीबी होने
के बाद भी तुम्हारे साथ चला था जैसे हम एक दूसरे के साथ चलना चाहते थे. आज भी अगर
चाहूँ तो तुम्हे इतने दिनों बाद तुमसे बात करके भी कुछ कह देता और तुम सुनने का
इंतज़ार करती मेरी भावनाओं को पढ़ने की कोशिश करती. परन्तु इससे मेरे अनतर्मन की बात
नहीं सामने आ पाती.
रागिनी तुमने तो सुना ही होगा कि महाभारत में कुंती को एक श्राप लगता है वह
श्राप इसलिए कि कर्ण का परिचय उसने पहले न दिया था अपने अन्य भाईयों से. जब माँ
कुंती को श्राप मिलता है तो बस इतना कि अब भविष्य में नारियां कुछ भी छुपा नहीं
सकेंगी. शायद तुमने इस श्राप का मतलब भी स्पष्ट कर दिया था और मुझसे कुछ नहीं
बताया जो मुझे जरुरत न थी और जरुरत की सारी बातें बताई. वाकई तुम इतने समझदार थे.
परन्तु आज महाभारत के सन्देश भी उलटे पड़ने लगे है. आज तो सारी बातें एक दूसरे से
बताकर भावनाओं का मज़ाक भी उड़ाया जाता है.
रागिनी तुमने भले ही मेरी डायरी के वे कागज फाड़ कर फेंक दिए हो, उन्हें जला
दिए हो, शादी के बाद तुमने बता दिए हो उस चिट्ठी के बारे में उस रिश्ते के बारे
में, पर तुमसे जैसी उम्मीद थी वैसे खरे उतरे थे तुमने कभी नहीं कहा ऐसा कुछ जो तुम
न कर सकती थी. तुमने वही किया जो मुझे चाहिए था. तुमने मेरी अभिव्यक्ति पर संदेह
नहीं उत्पन्न होने दिया था. तुमने मेरी जिज्ञासा को बढाया था तुमने मुझे मेरी
मंजिल पकड़ा दी थी. तुमने मेरा हौसला बढाया था.
पता है रागिनी मैं कभी इंसान की भावनाओं के साथ नहीं खेलता शायद तुम्हे मेरी
इसकी पहचान थी और मुझे तुम्हारी भी तुम्हारे लिए ही मैंने लिखा बहुत कुछ. और इस
मुकाम पर पहुंचा था जहाँ से मैं किसी और को चिट्ठी लिखकर अपनी प्रतिभा का परिचय
करा सकता था. अपने अहसास को उस तक पहुंचा सकता था. उसके लिए तुमने मेरे लिए एक
रास्ता हमेशा खुला छोड़ रखा था.
रागिनी तुम्हे मेरी पहचान थी और तभी तुमने जो कुछ दिया बस उतना ही तक मेरा
अभिप्राय था. जब मैं तुम्हे देखता हूँ तो तुम्हारे लिए पिछली बार की तरह ही अच्छे
शब्द आते है. मेरे दिल में तुम्हारे लिए वैसे ही जगह है जैसा हमेशा से रहा है. तुम
कुछ करते हो ऐसा, या ऐसा किया है जिससे मुझे कभी पीड़ा हुयी तो मैं ही तुम्हे नहीं
मेरे मन की वो अनोखी ताकत भी एक बार मुझसे दबाव डालकर तुम्हे माफ़ कर देती है.
रागिनी ये पत्र मैं तुम्हे ही नहीं लिख रहा हूँ उस समाज के लिए लिख रहा हूँ
जिसने मेरी नींद छीन ली है जिसने मेरे सुर्ख़ियों वाले पत्र का गलत मतलब निकाला है.
उस समाज को जिसने मेरी भावनाओं का कद्र ही
नहीं किया. रागिनी मैंने शायद इसलिए अब तक बहुत सारे पत्र व्यवहार अपने परिवार में भी किये. अब मुझे इस समाज के कुछ गिने चुने लोगों ने ही मुझमें और तुममे बहुत
दूरियाँ बढ़ा दी है. मेरे सोंच को बदलने का प्रयास किया है. तुमने मुझे ताकत दिया
था और जो हौंसले कि तुम्हे अपने मंजिल तक जाना है वो कुछ लोगों ने मेरा मन भटकाने
की कोशिश कर रहे है. अगर आज तुम्हे वो पत्र रूपी डायरी न लिखी होती तो मैं अपने
मकसद से शायद हार जाता.
जब मैं कहता हूँ समाज तो मैं खुद भी
उसमें आ जाता हूँ कभी मेरी अभियक्ति पर सवाल उठा कर उन्होंने मुझे कोसा तो इसका
मतलब अपने आपको भी कोसा क्या मैं लोगों को बदल सकता हूँ जी बिलकुल नहीं परन्तु इतना
जरुर जानता हूँ कि मुझमें और तुम्हारे बीच के जिस अंतर की बात वो समाज करता है यह
वही आजादी के पहले वाला चेहरा है कैसे कैसे लोग है यही जो आधुनिकता की दुहाई देते
है यही जो समानता की बात करते है यही वो जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते
है, वही अन्दर से इतने गिरे हुए है कि ये प्रेमी और प्रेमिका को जलाने में खाप
पंचायत की मदद करते है. ये तो उस समाज का आईना है जहाँ केवल समाज की बात होती है.
खैर बात तब समझ नहीं आती जब रागिनी तुम्हारी जगह लिए कोई और ही उसके उन मकसद में
सहभागी बन जाता है. यह रागिनी उसकी भी मजबूरी हो सकती है. परन्तु तुम्हारी मजबूरी
क्यों नहीं बनी.
रागिनी जब भी में किसी चिंता में पड़ता हूँ तो मुझे प्रकृति से मेरे पिताजी के
समान ही मुझे भी उस चिंता को भूलने के लिए गहरी नींद मिली हुयी है. और तुमसे कुछ
कहने के लिए ये उचित स्थान. इस स्थान पर हर कोई है वह धुंधला समाज का आईना, उस
परिपक्व समाज का आईना. चाहता तो मैं तुम्हे व्यक्तिगत डायरी न लिखता परन्तु उसकी
भी एक जरुरत थी. जिसको तुमने समझा और इस लिए आज ये खुली चिट्ठी तुम्हारे नाम लिख
रहा हूँ. रागिनी तुम्हे ये पत्र लिखकर शायद अब मुझे गहरी नींद की आवश्यकता न पड़े. शायद
मैं अपने हौसले फिर बाँध सकूँ इसलिए अगर अभी कहता हूँ कुछ तो बस इतना ही जैसे मैं
ध्यान रखता हूँ तुम्हारा और तुम भी... वैसे ही ये सिलसिला चलता रहे. जीवन की यही कहानी
याद रहती है. शायद समाज तक सन्देश पहुँचाने का यही एक आधार बन सके.
-प्रभात
Wonderful
ReplyDeleteThank you so much sir :-))
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-05-2016) को "सब कुछ उसी माँ का" (चर्चा अंक-2337) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए सादर आभार !
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