Wednesday, 18 May 2016

पर झोपड़ी के घर कितना सूकून नहीं होता

पर झोपड़ी के घर कितना सूकून नहीं होता 

बर्बादी आबादी का नाम नहीं होता
और जीवन में सफलता ही सब नहीं होता

गूगल साभार 

किस्से हज़ार होते है सोने के महलों के
पर झोपड़ी के घर जितना सूकून नहीं होता 
तरसती है आँखें बस खुशियों के आंसू की
हर किसी को इसका ही एहसास नहीं होता
पाने के लिए चीज़ों की कमीं नहीं होती
सिवाय चिंता खोने को कुछ नहीं होता  
प्रेम के शब्द का एहसास मात्र ही प्रेम है
कोई पास आ जाये इससे कुछ नहीं होता
दुःख ही दुःख तब आते और सुकून न होता 
यदि “प्रभात” के सिवाय भी शाम है आती 
और शाम के बाद सहर (सवेरा) नहीं होता
-प्रभात 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-05-2016) को "राजशाही से लोकतंत्र तक" (चर्चा अंक-2348) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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