पर झोपड़ी के घर कितना सूकून नहीं होता
बर्बादी आबादी का नाम
नहीं होता
और जीवन में सफलता ही सब
नहीं होता
गूगल साभार |
किस्से हज़ार होते है
सोने के महलों के
पर झोपड़ी के घर जितना
सूकून नहीं होता
तरसती है आँखें बस
खुशियों के आंसू की
हर किसी को इसका ही
एहसास नहीं होता
पाने के लिए चीज़ों की
कमीं नहीं होती
सिवाय चिंता खोने को कुछ
नहीं होता
प्रेम के शब्द का एहसास
मात्र ही प्रेम है
दुःख ही दुःख तब आते और
सुकून न होता
यदि “प्रभात” के सिवाय
भी शाम है आती
और शाम के बाद सहर (सवेरा) नहीं होता
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-05-2016) को "राजशाही से लोकतंत्र तक" (चर्चा अंक-2348) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार
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