अक्सर मेरे ख्याल जब शब्द बनकर
मुखरित हो रहे होते है तो मैं वास्तविक होता हूँ। जब यही शब्द श्रोता यानी कि
जिसके संबंध में ख्यालात होते है, उन तक पहुंचता है तो वे
मेरे बातों से ज्यादातर समय नकारात्मक रूप से ही प्रभावित होते दिखते है। ऐसा जिन
जिन के साथ होता है वहां से मेरे सम्बन्ध टूट जाते है। मेरा आर्थिक नुकसान भी हो
जाता है।
ऐसा जरूर है कि मैं अगर जरा भी वास्तविकता से दूर होकर बात करता
हूँ तो मेरे संबंध ऐसे लोगों से हमेशा ही सकारात्मक रूप से चलता रहेगा। आर्थिक
नुकसान भी नही होगा। मानसिक
सहूलियत मिलती है।
परन्तु यह जानते हुए कि मुझे
दिक्कतें होती है मैं वास्तविक बनकर ही जीना पसंद करता हूँ। मैं अपने आपको हर
तरीके से तपन देकर कठोर बना लेता हूँ। यह परवाह किये बगैर कि मेरे साथ चलने वाला
कोई आगे होगा या नही मैं अपने पैर को उसी दिशा में आगे चलने के लिए बढ़ाता हूँ जहाँ
से रास्ता आसान हो या न हो मगर मंजिल तक पहुंचने का वास्तविक मार्ग ही अपनाना
चाहता हूं। केवल इसलिए की मेरी आत्मा को संतुष्टि मिलती है।
जिंदगी के इस भागदौड़ में मैं
फिर से अपने लिए बनी बनाई दीवार तोड़कर चुनौतीपूर्ण एक मजबूत नींव बना रहा हूँ ताकि
अब दीवार खड़ी हो तो अपने ऊंचाई और अथक प्रयास का प्रमाण मिल सके। खुद की आत्मा को
संतुष्टि मिल सके। खुश मैं रहूंगा तभी आपको भी खुश रख सकूंगा...
-प्रभात
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