Saturday, 1 July 2017

कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाज

कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाज: कैसे हो स्थायी समाधान?" पर मेरा लेख।

आये दिन हम स्वर्ग की नगरी कश्मीर के बारे में हम समाचार पढ़ते ही है. समाचार पत्र कश्मीर में हिंसा को लेकर कई कई खबरे छापते है और हम पढ़ते भी है. परन्तु कभी हमें कश्मीर की अच्छी बातों को जानने और पढ़ने को नहीं मिलता. यह अपने आप में एक गंभीर और दुखद सवाल है कि कश्मीर स्वर्ग की नगरी होते हुए हमेशा ही अपने नकारात्मक छवि के लिए ही जाना जाता है. जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा होते हुए भी यह अपनी भारतीय छवि से इतर खूनी जंग के रूप में दिखाने को मजबूर रहता रहा है. इस संवेदन शील विषय की गहराईयों को समझे तो समझ आ जायेगा कि सरकारें भी राजनीति कश्मीर के नाम पर हमेशा से करती रही है और कश्मीर में आतंकवाद और पत्थर बाज जैसी समस्या को कई बार सुलझाने का प्रयास किया गया है वह चाहे अटल सरकार की रही हो, मनमोहन की रही हो या फिर मोदी की रही हो, लेकिन कोई स्थाई हल ढूंढ पाने में हम कामयाब नहीं हो सके.
मोदी सरकार के आते ही देश के नागरिकों में यह आश जगी थी कि कश्मीर मुद्दा अब जल्द ही सुलझ जाएगा, देश में अनुच्छेद 370 (जो कश्मीर को एक अलग विशेष उपबंध के तहत स्वायत्त राज्य, संविधान और उसको इसके अधिकार प्रदान कराता है) को हटाने की जरूरत को लेकर बहस चल रही थी परन्तु यह बहस भी बंद हो गयी. और अब यह मुद्दा सुलझने के बजाय लगातार उलझता दिखाई दे रहा है. अब तक हमने कश्मीर को उनके मुताबिक अनुच्छेद 370 दे दिया, उनको सारी सुविधाएँ भी मुहैया करा दी, उन्हें कश्मीर जैसे दुर्गम स्थानों के लिए विशेष सहायता भी दे दी लेकिन इन सबका एक भविष्य में गलत परिणाम ही निकला वो यह कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद और अलगाववाद और इनसे समर्थित पत्थरबाजों का हौंसला लगातार बढ़ता जा रहा है और देश के अन्दर देश द्रोही होने का महल बनाकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाते रहे है. नतीजा यहाँ तक निकला कि घाटी में शांति न होने से और लगातार खून की होली खेले जाने से पूरे देश के सैनिकों और नागरिकों पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है. देश में एक अलग तरीके की चर्चा चलने लगती है और राजनीति में अपने अपने सुझाव हर कोई देने की कोशिश करता रहता है. 

देश में जब अपने लोग ही आतंकी बनकर वो ही अपने देश का अहित करने लग जाए तो यह अत्यंत सोंचनीय हो जाती है. ऐसे देशद्रोहियों का काम आजकल पत्थरबाज सैनिकों पर पत्थर बरसा कर ही कर रहे है. जब स्कूली छात्र छात्राए यहाँ तक की सारे युवा भी यही काम करते है तो यह हमें सोंचने पर मजबूर करने लगता है कि आखिर कौन सी वाह ताकत है जिसकी वजह पत्थरबाज बन रहे है. इसकी वजह कई सारे है पहला तो यह कि यह अलगाववादियों से समर्थित कुछ भाड़े से लिए गए लोग है जो ऐसा दबाव में कर रहे है और ऐसे करने के पीछे का कारण दूसरा निकल कर आता है कि इनको कश्मीरियों को बरगलाया जाना और ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दिए जाने का. और इनके पीछे एक तीसरा और प्रमुख कारण वहां का कर्फ्यू जैसे माहौल का लगातार होना है जो मजबूरन सनिकों के खिलाफ खड़े होने में वहां की आवाम का गुस्सा बन कर उभरता है. लगातार वहां की ज्यादातर जनता न चाहते हुए भी इस माहौल में पिसती है. आतंकवाद की समस्या का निस्तारण भी पूरी तरह से हो जाएगा यदि पत्थरबाजी जैसी समस्या का निस्तारण हो जाए.
समस्याओं के तह में जाकर उसका उपाय ढूढने पर यही दिखता है कि अलग-अलग सरकारों द्वारा कश्मीर के सम्बन्ध में अलग अलग राह अपनाया गया है उसी के परिणामों को ध्यान में रखते हुए घाटी की समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाना चाहिए. वहां कि पत्थरबाजी जनसंख्या का लगातार बढ़ना हमारी लिए समस्या का कारण बन रहा है ऐसी सूरत में सबसे पहले अनुच्छेद 370 को हटाने की दिशा में कार्य करते हुए आगे पत्थरबाजी करने वाले मालिकों जो कि अलगाववादी ही है उनको ढूंढ ढूंढ कर पहचान की जानी चाहिए तथा उनके खिलाफ एक मुहिम चलाकर उन्हें काट -बाँट वाले रास्ते से हटाया जाना चाहिए और वहां पर देश के विभिन्न हिस्सों से नागरिकों को लाकर मुफ्त में ही बसाया जाना चाहिए. जिससे ये देश प्रेम की भावना का संचार कर सके. देशद्रोहियों की पहचान की जानी चाहिए और उसे उचित दंड दिए जाने चाहिए. घाटी की सुरक्षा के लिए फिर से पुनर्विलोकन करते हुए इस चीज़ का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कैसे डर, खूनी और मारकाट वाले माहौल से लोगों को शांति बहाली और विकास के मार्ग पर लाया जाए. यह हमें तय करना पड़ेगा कि कश्मीर हमारे लिए उतना जी ज़रूरी है जितना कि इंसान के लिए हृदय और इसलिए ही कश्मीर के लिए नए सिरे से एक रणनीति बनाकर पाकिस्तान को इस बात को मनवाने के लिए विवश करने में कोई कसर नहीं छोडनी चाहिए कि यदि वह आतंक का माहौल अपने देश में पैदा करेगा तो उसका जवाब उसे मिलेगा.


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