Monday, 3 July 2017

हाँ मैं प्रभात हूँ

मेरी दीदी ने कल रात को यह प्रकृति का अतुल्य और अद्दभुत दृश्य भेजा। कितना खूबसूरत अहसास होता है जब प्रकृति के अनुपम उपहार और उसके ताने बाने को देखते हैं और सोंचते है । जीने की कला और इनके रहने का बसेरा। जरा देखिए आप भी खुश हो जाएंगे। ये है मेरी बुलबुल और उसका तराना सुन भर लीजिये। आप कहेंगे कि ये दिन हमें भी याद आ गए।
एक कविता भी पढ़ते जाइये।
हाँ मैं प्रभात हूँ
तुमसे हर सुबह मिलता हूँ
थोड़ी देर बाद बिछुड़ता हूँ
फिर अगली सुबह ही मिलता हूँ
हाँ मैं प्रभात हूँ
बादलों में खो जाता हूँ
बारिशों में भीग जाता हूँ
सूरज के बिन अधूरा होता हूँ
और फिर काले सायों में छुपता हूँ
हाँ मैं प्रभात हूँ
कुछ चिड़ियों को बुलाता हूँ
उनके तराने को सुनता हूँ
नदियों से ताजगी पाता हूं
और फिर घोंसले बनवाता हूँ
हाँ मैं प्रभात हूँ
प्रभात
तस्वीर आभार: डॉ० प्रतिभा
स्थान: मेरे घर के आंगन का अमरूद का पेड़।

11 june, 17

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