Monday, 3 July 2017

बिछड़े क्यों हो?

गगन तुम मायूस हो, चमन तुम उजड़े से हो
बताओ आखिर बेवजह मुझसे बिछड़े क्यों हो?
हृदय की तरंगों को गिन लिया था साँसों ने
व्यथित हो तो अब क्यों हो?
सरोवर है कमल तुम हो, इस मंजिल में साथ
तुम होकर भी गम में क्यों हो?
चहचहाती, चिल्लाती और शोर में तुम हो
फिर मुझसे रूठे क्यों हो?
फर्क पड़ता है आसमाँ को अगर एक बार
तुम न दिखो, अब छुपती क्यों हो?
उल्लास था जमाने में, जानते तुम हो मानते तुम हो
मंजिल भटक रही है अब मुझसे तुम दूर क्यों हो?

-प्रभात

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