उपस्थिति में अनुपस्थिति का आभास कर ले
युद्ध को शीघ्रता से विराम कर ले
झगड़ा नही है कोई मानव धर्म
महाभारत से जाना है धर्म-अधर्म
जीवन के कुछ दिन बेहिसाब मिले है
खुशियों के लिए सौगात मिले है
दो-चार दिनों में सम्पूर्णता का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(1)
जीवन है एक पतवार समझो
खेकर सही किनारे लगाकर देखो
मिलती है खुशियों का अनुपम उपहार
कुछ पा लेने और कुछ करने का साहस अपार
थोड़े में ज्यादे का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(2)
लक्ष्य दिखे बस अर्जुन जैसा
जो चाहे बन जाए वैसा
मोह-प्रेम और अपने में विश्वास रहे
क्रोध, जलन और भय से दूर रहे
असफलता में सफलता का आभास कर ले
उपस्थिति ................(3)
-प्रभात
Wonderful.
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteअर्जुन जैसा लक्ष्य हो तो सफलता जरूर मिलती है ...
ReplyDeleteभाव पूर्ण हैं सभी छंद ...
बहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
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सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteआपका बहुत बाहुत आभारी हूँ!
DeleteVery nice post ...
ReplyDeleteWelcome to my blog on my new post.
Thanks
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