Sunday, 30 August 2015

उपस्थिति में अनुपस्थिति का आभास कर ले..........

उपस्थिति में अनुपस्थिति का आभास कर ले
युद्ध को शीघ्रता से विराम कर ले

झगड़ा नही है कोई मानव धर्म
महाभारत से जाना है धर्म-अधर्म
जीवन के कुछ दिन बेहिसाब मिले है
खुशियों के लिए सौगात मिले है
दो-चार दिनों में सम्पूर्णता का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(1)

जीवन है एक पतवार समझो
खेकर सही किनारे लगाकर देखो
मिलती है खुशियों का अनुपम उपहार
कुछ पा लेने और कुछ करने का साहस अपार
थोड़े में ज्यादे का आभास कर ले
उपस्थिति ...............(2)

लक्ष्य दिखे बस अर्जुन जैसा
जो चाहे बन जाए वैसा
मोह-प्रेम और अपने में विश्वास रहे
क्रोध, जलन और भय से दूर रहे
असफलता में सफलता का आभास कर ले
उपस्थिति ................(3)

-प्रभात 

11 comments:

  1. अर्जुन जैसा लक्ष्य हो तो सफलता जरूर मिलती है ...
    भाव पूर्ण हैं सभी छंद ...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..

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    1. आपका बहुत बाहुत आभारी हूँ!

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  4. Very nice post ...
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