जिस-जिस से मैंने प्यार किया
वो प्यार कहाँ, एक सपना था
प्यार के बदले बस धोखा मिला
वो इंसान कहाँ अपना था
रह-रह के यादों में देखा था,
सुन्दर अपनी निगाहों में
रुक-रुक के ऐसे चलता था,
देख न ले कोई राहों में
उस पहले प्यार में पड़कर
असलियत ही कहाँ मालूम था
जिस-जिस ..........
गिनती के कुछ लोग मिले थे,
मेरे जैसे हमराही को
हार में भी जिता रहे थे,
अपने सीधे विचारों को
जिधर भी मैंने पैर बढ़ाया
उधर ही फैला काँटा था
जिस-जिस ..........
गाता-गाता चल पड़ा हूँ ,
शहनाई ले उस तन्हाई को
प्रेम-प्रेम में लिख रहा हूँ,
दबी हुयी भावनाओं को
जिस-जिस को मैंने लिख लिया
उसे चाहा ही मैंने क्यों था
जिस-जिस ..........
-प्रभात
खूब .... रूमानी भावों की गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद भास्कर जी
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