हे शक्ति प्रदर्शक!
हे जुल्म नियंत्रक!
ये कैसी आजादी है?
गरीब कहाँ अभी सोया
है
भूख की ऐसी लाचारी है
जीवन बना नर संहारी
है
मैंने जुल्म सहा है
बचपन से
अब मैं केवल अपराधी
हूँ
मैं दोषी हूँ पहले
निर्दोष था
यहाँ लोग ही अन्यायी
हैं
ये कैसी आजादी है ?
हे प्रधानमंत्री! हे
मुख्यमंत्री!
संविधान संशोधन करने
बैठे
जन-धन को केवल लूटने
बैठे
जनता जब अनशन पर बैठी
पुलिस लाठियां लेकर
बैठी
लड़कियों पर पथराव हुआ
न जाने कितनों से
दुर्व्यवहार हुआ
जान गयी तब सरकार मान
गयी
प्रलोभन से जनता मान
गयी
यहाँ सरकार ही
अविश्वासी है
ये कैसी आजादी है?
हे अधिकारीगण! हे
संरक्षक!
गोलियां चली हैं
निर्दोषों पर
गाज गिरी है कोरे
कागज पर
शक्ति दिखी है
निहत्थों पर
जो भारी पड़े है
भ्रष्टाचारी पर
क्यों हत्यारों से
कुर्सी चलती है
क्यों नेताओं से
वर्दी हिलती है
रिश्वतखोरी खुलेआम है
पैसे व ओहदे से केवल
न्याय है
यहाँ गुंडागर्दी है
ये कैसी आजादी है?
हे धर्मगुरुओं! हे
राजनीतिज्ञों!
धर्म बनाना तुमसे
सीखे
फूट डालना तुमसे सीखे
खजाना भरना तुमसे
सीखे
व्यापार बढ़ाना तुमसे
सीखे
वेश्यावृत्ति चलाना
सीख लिया है
देश लूटना सीख लिया
है
देश! ये कैसी लाचारी
है
ये कैसी आजादी है?
-प्रभात
Bada maarmik aur sahi chitran.Badhai!
ReplyDeleteक्या बात है सर ...आप इतना सुन्दर टिप्पणी करते है .....बहुत -बहुत शुक्रिया
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
शुक्रिया
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