सुलगता रहा दिन-रात बस चिंता बनकर
मेरी मौत का जिम्मेदार मैं ही हूँ
मुझे द्वेष ने जलाया
मुझे अभिमान ने जलाया
मुझे भेदभाव ने जलाया
मेरी बाती में प्यार जल रहा तेल बनकर
इस अन्धकार का गुनहगार मैं ही हूँ
अपने ठंडेपन से ही कुछ नया सोंचने पर मजबूर
किया है
बारिश ने मेरे देह को भिगोया इतना
भूल जाऊं जिससे मैं तूफ़ान की बात
मुझे बचपन की खुशियाँ दी है एक खिलौना बनकर
मेरे न खेलने का जिम्मेदार मैं ही हूँ
-प्रभात
Sahi kalpana.
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर..
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शुक्रिया
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