Tuesday 11 August 2015

परिवार....

घर के बीच में दो किवाड़ लग गए है
रिश्तों-रिश्तों में कीटाणु लग गए है
बोली-बोली में जहर के लार लग गये है
देखने से बनावटी परिधान लग गये है

सास-बहु में ऐसे विकार लग गए है
दिन भर मनाने में सारे परिवार लग गए है  
चेहरों पर चमक की जगह आग लग गये है
प्राईवेट-सरकारी समझौतों के दुकान लग गये है

पति पत्नी के रिश्तों में तलवार लग गये हैं
कई-कई नसमझ सवाल लग गये है
बच्चों पर इन रिश्तों से कुठाराघात लग गए है
झूमते परिवारों में रोने के तार लग गये है

रहन-सहन में अलगाव के बयार लग गये है
किलकारियों में रोने के आवाज लग गये है
श्रृंगार में आधुनिकता के पाँव लग गये है
बाजारों में ऋण के सवार लग गये है

खान-पान में संक्रमित विचार लग गये है
रोटी की जगह मैदे में ही अचार लग गये है
जिम में ही बैठे इतने तनाव लग गये है
लाईनों में कई-कई बीमार लग गये है  
-प्रभात   

2 comments:

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!