Tuesday, 18 August 2015

दादा जी के नाम एक पत्र

पूजनीय दादा जी,
कितने दिनों बाद आप से मुलाकात हुई
खुले आसमान में ही खूब बात हुई
रात हुई और मन की बात हुई
आप जब कल पढ़ा रहे थे
तो पढ़ाने की बात एक गुरूजी से ध्यान आया
 -गूगल 
तभी तो आप भी बहुत मेहनत से पढ़ा रहे थे
हालांकि आप और गुरूजी साथ दिख रहे थे
आपका स्नेह बच्चों पर मेरे प्रति स्नेह ही था
परन्तु उसमें भी आपके साथ एक और रूप था
वे मेरे दोस्त के सामान दिख रहे थे
तभी तो उस स्नेह में आप दिख रहे थे
मैं तो आपको देख बहुत मुसकरा रहा था
मेरे सामने आप जितने देर तक थे
लग रहा था उसे सेल्फी में कैद कर लूँ
अब तो पढ़ाते हुए आपके साथ मुझे दिखना था
संग मेरे मुझे अपनी बहन को कैद करना था
माँगा था सेल्फी लेने के लिए फोन
लगा था कुछ इमोशनल सा टोन
पता था मुझे जैसे की यह मौका है साथ होने का
सारी बातें पिछली मिलन का रिकैप होने का
परन्तु थोड़ा सा मैं बुद्धू हूँ
मुझे नहीं पता था कि नींद में हूँ
पर उस छड़ का लगाव आपके प्रति असीम प्यार दर्शाता है
आपके डांटने के अंदाज में भी झलकता प्यार दिखाता है
दादा जी, यह कोई पहली मुलाक़ात नहीं है
आप नहीं है तो भी न होने का अहसास नहीं है
तभी तो हर स्वप्नों में हम मिलते रहते हैं
और आप–हम हँसते रहते हैं
कुछ सिखाते है और कुछ दुहराते है
लगता है मुझे और बात करना शेष है
कुछ कहना और कुछ सीखना है
तो आप ऐसे आते रहिएगा
अपना हाल सुनाते रहिएगा
यहाँ सब कुशल मंगल है
बस ७ में से ६ गाय कम है
बाकि आम की आपने कमी नहीं होने दी है
अमरुद, आंवला, लीची, बेल, करौदा, तूत सब लगा कर दिया
तभी तो मैं स्वस्थ हूँ
बन्दर, मोर कहते मैं भी मस्त हूँ
अच्छा दादा जी विदा! फिर मिलते है
आपका प्रिय पौत्र

-प्रभात   

4 comments:

  1. सुन्दर अहसासों को समेंटे शब्द
    http://savanxxx.blogspot.in

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  2. क्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!

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