एकता में शक्ति है। इंसान वो इंसान कहाँ जो
इसे टुकड़ों में हिन्दू मुसलमान करके देखता है।
भारत जिसे हम देख रहे हैं आलोचना कर रहे हैं। शायद अब वो इस कदर लगता भी है जब कुछ सामाजिक घटनाएं जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार हैं वो तो है ही, कुछ को बढ़ावा देने के लिए राजनैतिक गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं।
भारत जिसे हम देख रहे हैं आलोचना कर रहे हैं। शायद अब वो इस कदर लगता भी है जब कुछ सामाजिक घटनाएं जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार हैं वो तो है ही, कुछ को बढ़ावा देने के लिए राजनैतिक गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं।
आज हम भक्त हैं मोदी के, राहुल के और केजरीवाल के लेकिन हम अपने सामाजिक उत्तरदायित्यों को न तो समझते हैं और न ही उनके लिये लड़ना चाहते हैं ना ही निष्पक्षता के साथ उनके भक्त बनना चाहते हैं। आज हर कोई टूट रहा है।
आम के पेड़ टूट रहे हैं
बरगद सूख रहा है
सड़कें टूट रही हैं
मुहल्ला टूट रहा है
बच्चा टूट रहा है
आदमी टूट रहा है
खिलौने टूट रहे हैं
मकान टूट रहे हैं
धर्म टूट रहा है
न्याय टूट रहा है
पैसा टूट रहा है
जिंदगी टूट रही है
अस्पताल टूट रहे हैं
महिलाएं टूट रही हैं
बर्फ टूट रहा है
और सब टूट कर पानी..........
अंत में पानी ही हो जाना है सब कुछ।
तस्वीर क्रेडिट - प्रभाकर
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