Monday, 23 September 2019

जी रहा हूँ जिंदगी अब जुल्फ के साये में


जी रहा हूँ जिंदगी अब जुल्फ के साये में
वो रात खुशनुमा शान थी अदाओं में

हसरतें मिट गईं, चाहत का इम्तहान हो गया
अजनबी बनकर रहे किस्सों में विहान हो गया
चल पड़ी है जिंदगी किसी और पेड़ की छांव में
लेकिन उसी का इंतजार है अभी अपनी राहों में

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-09-2019) को     "बदल गया है काल"  (चर्चा अंक- 3468)   पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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