Monday 23 September 2019

कुछ सुकून के पल


कुछ सुकून के पल
कुछ तरंगे जो हमेशा मुझे पास पहुंचा देती हैं
कुछ एहसासें जो बाहों को बाहों में फिसला देती हैं
कुछ तारों व सितारों का मंडल जिन्हें हम खामोश कर देते हैं
मैं कहता हूँ वही प्यार पराया आज तुम्हारे साथ है

कवियों की तरह पागल, आशिकों की तरह पागल
लेखकों की तरह पागल, खोजी की तरह पागल
मन ही मन हम दोनों ही पागल
कहीं तो कभी तो कोई तो होगा पागल
जो कहेगा एक पागल को दूसरा पागल मिल गया
चाँद अब भी दिखा है उसी बचपन में खाट के ऊपर
एक अंगुली तुम्हारी और एक मेरी
करधन को सीधा करते हुए नोचना तुम्हें
और फिर तुम्हारा गाल ऊपर करके बोलना
और फिर खिलखिलाना, जैसे उतरकर आ गया चाँद
चूमने हमें और हमें लगा कि बचपन साथ है

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