Sunday, 3 July 2016

भाग- अभी निर्धारित नही

अपने शहर में उजाला खत्म होने वाला था, बारिश होने लगी थी हलकी सी और चाँद दिखने लगा था। मैं थाना डुमरियागंज से कांपते हुए ठण्ड मौसम में निकला था। एक तो बारिश की कपकपी और दूसरा चिंता इस बात की कि क्या मेरे निरपराध पिताजी को इतने संगीन रेप के अपराध से निकलवाया जा सकता है। थाने के दीवान जी पेट फुला कर और मूंछ फैला कर मुझे झूठी आश्वाशन दे ही रहे थे और मैं भी उन्हें भगवान मान कर प्रसाद चढाने के लिए बेताब था। मैं तो प्रसाद चढ़ा कर ही खुश कर सकता था इन्हें। मैं भरे बाजार में बिक सकता था अपने पिता जी के लिए। पर कोई मोल लगाने के लिए तैयार होता दिख तो नहीं रहा था। इधर अपने दिल्ली के शोध वाले काम से फुरसत नहीं। मेरे घर में मेरी माँ रोटियां सेंकने के लायक बची ही न थी। वो चिंता में डूबी रह रह के बस पिताजी के घर पर आने के सपने देखा करती रहती।
माँ; मेरे और मेरी दीदी डॉ प्रतिभा के छूटे आश्वाशन से कहाँ खुश रहने वाली थी। माँ तो बस अपने पास किसी को बैठा देखना चाहती थी जो बैठ कर उनकी चिंता का भागी बन सकता था। परिवार में एक छोटे भाई के अलावा कोई था भी नहीं जो मदद कर सकता वह भी क्या ही करता मेरे साथ ही दिल्ली में रहता था और अभी भी दिल्ली ही था । संयोग था कि इस बार मेरी दीदी मेरे साथ थी और हम दोनों बस माँ को ढांढस बधाने को बचे थे। मेरे पिताजी से बात होने को तो चार महीने से ज्यादे हो चुके थे जब सामने मिलकर बात हुयी हो, फोन पर बात होने का सवाल ही नहीं क्योंकि पिताजी रेप के फर्जी केस में गैर जमानती अभियुक्त बना दिए गए थे। फिर भी हम पुलिस और समाज से अकेले लड़ने के लिए काफी थे, उस पुलिस से जो अपने रिपोर्ट इस नतीजे पर पहुँचा सकी थी कि मेरे पिताजी सचमुच अपराधी है। बिना किसी सबूत के, बात तो कुछ होने का सवाल ही नहीं था।
हाँ तो दीवान जी से मेरी मुलाकात के बाद अपने शहर में जब वापसी हुयी थी तो उस मुलाकात में मेरी दीदी भी साथ ही थी परंतु उन्हें मैंने उस वक्त सामने आने न दिया था। बात हो जाने तक वह क्षेत्राधिकारी के ऑफिस से 2 किलोमीटर दूर ही बाजार में छुप कर मेरे आने का इन्तजार करती रही थी। मेरे शहर से मेरा घर मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर है और जहाँ गए थे वो मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर परंतु मेरे शहर बस्ती से। हम लोग दोपहर में घर से चले थे और शाम को बस से अपने शहर बस्ती उतरे थे। बस में कुछ पैसे भी साथ में लिए हम लोग खुसर पुसर किये जा रहे थे डर भी लग रहा था कहीं किसी ने रास्ते में छीन लिया तो क्या होगा। मगर सही सलामत अपने शहर तक पहुच गए तो जान में जान आयी। दीदी ने पहुँचते ही घबरा कर कहा अब क्या करोगे इतनी देर हों चुकी और तुमने लेट न किया होता तो हम घर पर पहुँच गए होते। अब तो कोई ऑटो भी नहीं मिलेगा। मिलेगा भी तो इतने पैसे कहाँ से देंगे 500 रूपये तो कम से कम लेता सुनसान रास्ते से होकर घर तक पहुंचने के। मैं अगर ऑटो कर भी लेता तो मेरे साथ दीदी, मतलब हम दो होते और ऑटों के साथ भी दो तो होते ही!
कुछ समझ नहीं आ रहा घर पंहुचा कैसे जाए। मैं पहले जब भी रेल से आया था मुझे कोई न कोई ले जाने को तैयार हो जाता ही था। कभी घर वहां से 400 रूपये में भी गया था और कभी 40 रूपये में भी । जब सवारी भर जाती है और ऑटो इंतजार करता है गोरखपुर जाने वाले इंटरसिटी का तो वह 8 बजे का समय होता था और उस सूने कचहरी बस्ती से सवारी 20 रूपये में बैठ जाती थी। आज तो 8 बजे के बाद का समय था। मैंने कई ऑटो को इशारा किया और रोका। कोई चलने को क्या रोकने भर को तैयार नहीं था। एकाएक दीदी के पास एक ऑटो वाला रुका और कुछ पूछने लगा पिताजी के बारे में । मेरे दीदी को जानने वाले बहुत लोग है मेरी घर या उस शहर में उतनी जानकारी किसी से नहीं। दीदी ने उस शख्स से बात किया और बताया की हाँ पिताजी ठीक है। मुझे लगा कोई जानने वाला है मैने जानना चाहा था की ऑटो वाले से बोलो चल ले । उन्होंने मुस्काराते हुए कहा अरे ये पिताजी की तरह ही सताए गए लोगों में से ही एक है और अब इनकी स्थिति ने इन्हें ऑटो वाला बना दिया है ये ले नहीं जाएंगे बस हाल चाल पूछ रहे थे।ऐसे समय जब पुलिस की पुलिस पूरी खिलाफत में उतरी हो और पिताजी की तलाश कर रही हो ऐसी दशा में मैं चाहता था की बोलने की कमान मेरे पास हो क्योंकि भोलेपन में किसी के द्वारा किसी से बात हो जाने पर दिया गया उत्तर मुसीबत का कारण बन सकता था। मैंने कहा दीदी रहने दो उन्हें जाने दो, हमें घर जाना है किसी से बात नहीं करना।
थोड़ी देर में एक शख्स पागल सा कहता है दीदी के पास आकर, और पिताजी कैसे है। फिर सहम गया ये जानना क्या चाहते है, मैंने जान्ने की इच्छा जताई अब ये महाशय कौन हैं। दीदी कहती है, अरे जानती तो मैं भी नहीं पर ये परिचय दे रहा है जैसा जानने वाला ही है उसे भी जाना है घर की और ही वही आस पास का रहने वाला है।अपने को कोई यादव बताया और कहाँ अरे भईया आप क्या जानते हो डॉक्टर साहब से बोलना बता तुरंत बता देंगे क़ि मैं कौन हूँ अच्छे अच्छे लोगों से मेरा सम्बन्ध है इतना कहकर जैसे ही वह दुबारा यह बात झूमते हुए कहा मुझे। समझ आ गया कि कोई पियक्कड़ तो है ही बाक़ी का पता नहीं। 9 बजने को हो रहे थे और कह रहा था मैं भी यही शहर में काम करता हूँ डेली आता जाता हूँ घर क्या ऑटो रिज़र्व करोगे अभी बस मिल जायेगी चल लेना साथ। मैंने सोंचा कि ये तो सही कह रहा है क्योंकि जब भी मैं गया हूँ घर अपने शहर से मुझे भी किस्मत से कोई न कोई गाड़ी घर पहुंचा ही दिया करती थी। आज भी मिल ही जायेगी। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद हम फिर हताश होकर ऑटो लेने के लिए कही और दूर जाकर बस अड्डे की सोंचने लगे थे। बस अड्डा कचहरी बस्ती से 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। अब उस शराबी आत्मा से भी पीछा छुटाना था। इसलिए अब थोड़ी दूर जाकर खड़े हुए उसे पीछे मुड़ कर देखा तो लगा वो तो जा चूका था ऐसा लगा। थोडा अच्छा लगा था। थोड़ी ही देर में एक स्कूल की बस आकर रुकी कही चलना है तो आ जाओ। हम भी इसी इंतज़ार में थे ही पर बस में बैठनें से पहले दिल्ली का गैंग रेप काण्ड ध्यान गया । परंतु हिम्मत जुटाकर उस बस में चढ़ने लगे देखा कि ड्राईवर, कंडक्टर के अलावा कोई एक आदमी और बैठा था। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने कहा देखा मिल गया मैंने कहा था आप लोग भी समय से पहुँच जायेंगे और पैसे भी बच गए। मैंने कहा कही बीच में उतार दिया और न ले गया तो। वह आदमी झूमते हुए कहा, अरे बुजरी ले काहे नहीं जायगी ले जाएगा इसका बाप भी, का कहत थया भैया।मैंने हाँ में हाँ भर दिया सहम कर अब तो बैठ ही गया था दीदी को साथ लेकर। और फिर वह व्यक्ति कुछ कहने ही वाला था क़ि तब जाकर मैंने दीदी से धीरे से कान में कहा, अरे ये तो वही शराबी है इसमें भी साथ मिल गया।हाँ इसे भी वही जाना है कह रहा है पिताजी मुझे अच्छे से जानते है यादव हूँ बता देना बस।मैंने कहाँ चलो ठीक है। पर जो कुछ हो रहा था, सब भय का कारण ही बनते जा रहे थे।
कुछ दूर बस चली ही होगी 2 किलोमीटर और एक ट्रक को देखकर रोक दिया। ड्राईवर कुछ कहता क़ि हम और दर गए थे। शराबी व्यक्ति ने भी कहा आओ भईया ये कह रहे है कि ट्रक में बैठ जाओ सही रहेगा और कौई ले भी नहीं जाएगा । मैं आगे पीछे देखा रात में और कोई चिराग भी नहीं दिखा जो मुझे घर की तरफ जाने के लिए रोशनी दिखाता अब तो फिर हिम्मत बाँध कर ट्रक में बैठना था। अब मैं उस मिलनसार हुए आदमी से जानना चाहता था की है कौन आप। मैंने पुछा अच्छा ये बताइए महाशय आप है कौन । फिर उसने कहा मैं भी घर की ऒर चलूँगा और फला यादव हूँ बैठो इसी ट्रक में आओ चढ़ जाओ। मैं चढ़ गया पहले देखा कि ट्रक में कोई और छुपा तो नहीं फिर जब कोई ड्राईवर और उस शराबी के अलावा कोई नहीं दिखा तब जाकर थोड़ी जान में जान आया। दीदी को अब चढ़ाना था।उन्हें ट्रक में तो पहली बार चढ़ने का अवसर मिला था ऊँचा सीट होने की वजह से वह शराबी उन्हें चढाने को हाथ लपकाता इससे पहले मैंने हाथ पकड़ कर बैठा लिया उन्हें अपने बगल और उस शराबी के बिलकुल उल्टी तरफ। मैं अपनी हिम्मत को बढ़ा कर सवाल पर सवाल करने लगा उस शराबी से भईया अच्छा आप यहाँ कहाँ काम करते हो और कहा। घर है। वह तो चुप हो नहीं रहा था और मैं बस अपने उत्तर निकलवाने की फिराक में पूछता जाता और थोड़ी देर बाद उसे केवल हँसता और उस हंसी का और बक बक का कारण उसकी शराब को जानकर उससे कम बात करने का सोंचा और उसकी हाँ में हाँ बिना कुछ सुने उत्तर दिए जाता रहा उसके और मेरे प्रसंग को देख दीदी डरकर भी हंसती रही मन ही मन। क्योंकि जो भी कहता है मैं "हाँ ये तो है" ऐसे कहकर जवाब दे देता अरे मुझे अपने घर पहुँचने की पडी थी और बार बार इस ताक में लगा था क़ि दूरिया कम हो क्यों की अभी भी वह डर का कारण बना हुआ था।
कई बार मैनें उस शराबी की बात को उस ट्रक वाले ड्राइवर से कन्फर्म किया सोंचा कहीं इनकी कोई चाल तो नहीं हमें यहाँ ट्रक में बैठाने का और जब घर की ओर की दूरिया कम होने लगी तो दिमाग फ्री होता दिखा। परंतु थोड़ी देर में ही शराबी ने कहा, इधर सुनो अपना मुह मेरे कान पर लगाया मैंने कहा अब तो लग रहा है कुछ अनर्थ हो जायेगा। मैंने कहा हाँ बोलो 'तेजी से, और चिल्लाया कहता है, चुप रहो मैंने एक कतल किया अभी और फिर कचहरी आ गया। मुझे कौन नहीं जानता सब जानते है कहो तो। इतना कहा कि मेरा डरना तो और भी जरूरी हो गया । दीदी को जो बात उसने मुझसे कही वह पता न चला इसलिए उन्हें उतना डर नहीं महसूस हुआ। परंतु अब तो घर के नजदीक भी आ ही रहे थे। उसने कहा मैं जमकर शराब पीया और वही मारके उसे नदिया में फेंक के आ रहे है मैं तो डॉ साहब से भी कई बार कहा क़ि जरुरत हो तो आपिके एंटी पार्टी को वही नदिया में वईसे फेंकवा देयी जईसे ससुरे के अभिनय आवत हाई, । मैंने केवल कहा अच्छा तो क्या हुआ अच्छा किया मार दिया बहुत अच्छा पर पुलिस पा गयी तो। अरे पुलिस खोजा करे हमे सब जानत थीन केहु उखड नई सकत कुछ। अब खोजा करे हमे तो पईसा जे देयी सबके वाली करब हमसे और कोनो मतलब नहीं अब हम घर जात हाई और सोईब भिन्नन्हाई हम फिर आयी के दुकानी पे काम करब। हम कहे अरे बहुत अच्छा किहा। अंदर से तो गाली देने का मन कर रहा था मेरी चलती तो उसे उठा कर ट्रक से बाहर फेंक देता। वैसे भी अब बिना मन के उसकी बात में हाँ में हाँ मिलाते बहुत देर हो चुकी थी और इतना पका दिया था कि अब शराब भी उतरने को हो रही थी। भईया उतारा यही उसने ड्रायवर से कहा अपने बताए घर की और जाने वाली गली की ओर इशारा करके वह उतर गया। अब मैं और दीदी थे। मैंने ट्रक वाले भईया से बोला भईया ये आदमी जो उतरा है इसे जानते थे क्या। कहता है नहीं मैंने बस ऐसे ही बिठा लिया सोंचा इधर जा रहा हूँ बैठाये चलूँ । मेरे दिमाग में आया क़ि हो सकता है क़ि ये सोंचा हो कि कुछ पैसे मिल जाएंगे इसलिए बिठा लिया होगा परंतु उसने शराबी के द्वारा 20 रूपये दिए जाने के बाद लेने से इनकार कर दिया था। हमें उसने हमारे घर से आगे थोड़ी दूर पर पहुँचने पर उतार दिया क्योंकि बातों के चक्कर में और घने अँधेरे में मैं अपना घर भूल गया था। मैंने उसकी ओर 40 रूपये बढ़ाया उसने लेने से इनकार कर दिया। मेरे बहुत कहने पर भी वह पैसे नहीं लिया और फिर ट्रक ड्राईवर के रूप में गाने सुनते हुए चल दिया ......
प्रभात
कहानी आगे- पीछे दोनों तरफ है कृपया साथ बने रहिएगा।



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