Sunday, 3 July 2016

जाति-धर्म


जाति-धर्म 
-गूगल से साभार 
किसी ने कहा क्या नाम है आपका 
मैंने कहा प्रभात
परभात वो तो ठीक है आगे क्या है
आगे प्रभाकर/मध्याह्न है, मैंने कहा
नहीं नहीं मतलब...अच्छा छोड़ो
तुम्हारे पिताजी का नाम है क्या
हां बिना नाम के कोई होता है क्या
तो वही तो पूछ रहा हूँ, उन्होंने कहा
डॉ प्रेम नारायण है पिताजी मेरे
अच्छा आगे क्या लगाते है
कुछ नहीं लगाते है 
कैसा नाम है पूरा परिवार ही है ऐसे ?
मैंने कहा हाँ ऐसे ही है
वैसे कोई तो कुछ लिखता ही होगा
हाँ कुछ न कुछ तो लिखते ही है लोग
आप क्या जानना चाहते है?
जाति केवल या नाम पूरा
हाँ वही, उन्होंने कहा
तो आपने सीधे क्यों नहीं पुछा 'कुर्मी' हूँ
कुर्मी? मतलब नाम में क्या लगाते है कुर्मी 
चौधरी, सिंह, पटेल, वर्मा सब कुछ जो मिल जाये
अच्छा तो चौधरी हो मतलब जाट
नहीं, नहीं जाट से अलग 
चौधरी हम भी लगा लेते है
तो तुमने पहले क्यों नही बताया
अरे मैं तो कुछ नहीं लगाता न
अच्छा वैसे कोई रिजर्वेशन है क्या
हाँ ओबीसी, पिछड़े है हम
यही तो हम जानना चाहते थे उन्होंने कहा
तो सीधे पूछ लिया होता मैंने कहा
कोई जवाब नहीं मिला,
सुनो! जाति, धर्म, वंश क्यों पूछते हो
जब सारी जातियों की कहानी न मालूम हो
जब सारे जातियों के गोत्र न मालूम हो
जानकारी तो मजहब का भी नहीं है तुम्हे
तुम जाति पर आ जाते हो
बंटवारा करने, और दोस्ती करने 
धर्म मानव का तुमने सीखा क्यों नहीं
जाति से रिश्ता बनाना तुमने सीखा है अगर
तो अपने जाति के सबसे पिछड़े आदमी को देखो 
वह गरीब क्यों है, उससे रिश्ता क्यों नहीं बनाया
उसकी तो उपजाति गरीब तुमने ही उपजाई
कहते हो आरक्षण मत दो
मैं भी कहता हूँ मत दो
मगर पूछना तो बंद करो जाति-पाति
इंसान बांटना बंद करो मज़हब पर
और अंतर्जातीय शादिया मत रोको
और बर्तन-बिस्तर अलग न होने दो
फिर आरक्षण मत दो!!!
-प्रभात



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