Thursday, 24 August 2017

बस यूं ही!!

प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा।
तेरे रग-रग में बसकर अपनी याद दिलाऊंगा।।
और कितनी रातें बीतेंगी ऐसे करवट बदले-बदले?
अब फिर क्या कभी वैसा अधिकार जमा पाऊंगा?
नही! फिर भी अपना होने का एहसास कराऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा।
इन स्वप्नों की दुनिया में कब तक खोना होगा?
छूकर आसमान बादल में कब तक रहना होगा?
नही पता! बस हर दिन एक आस लगाए जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा।
गुजरी थी जो हवा छूके हमको, पास कभी आएगा?
उस खुशी के अंतिम बेला का मुस्कान कभी आएगा?
नही! तो भी इक-इक क्षण तुझे समर्पित कर जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
क्यों होता है ऐसा सब कुछ अच्छा अच्छा लगता है?
जो बीते थे अच्छे दिन अपने वह लौट नही आता है?
नही पता! कभी तो आएगा वह पल जब मिल जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
वक्त देखने लगा है हमको तो कब तक देखेगा ऐसे?
सब कुछ अच्छा है जब, तो परिणाम बुरा होगा कैसे?
नही! होगा जो होने दो, मगर विश्वास नही डगमगाउँगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार



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