प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा।
तेरे रग-रग में बसकर अपनी याद दिलाऊंगा।।
और कितनी रातें बीतेंगी ऐसे करवट बदले-बदले?
अब फिर क्या कभी वैसा अधिकार जमा पाऊंगा?
नही! फिर भी अपना होने का एहसास कराऊंगा...
अब फिर क्या कभी वैसा अधिकार जमा पाऊंगा?
नही! फिर भी अपना होने का एहसास कराऊंगा...
इन स्वप्नों की दुनिया में कब तक खोना होगा?
छूकर आसमान बादल में कब तक रहना होगा?
नही पता! बस हर दिन एक आस लगाए जाऊंगा...
छूकर आसमान बादल में कब तक रहना होगा?
नही पता! बस हर दिन एक आस लगाए जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा।
गुजरी थी जो हवा छूके हमको, पास कभी आएगा?
उस खुशी के अंतिम बेला का मुस्कान कभी आएगा?
नही! तो भी इक-इक क्षण तुझे समर्पित कर जाऊंगा...
उस खुशी के अंतिम बेला का मुस्कान कभी आएगा?
नही! तो भी इक-इक क्षण तुझे समर्पित कर जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
क्यों होता है ऐसा सब कुछ अच्छा अच्छा लगता है?
जो बीते थे अच्छे दिन अपने वह लौट नही आता है?
नही पता! कभी तो आएगा वह पल जब मिल जाऊंगा...
जो बीते थे अच्छे दिन अपने वह लौट नही आता है?
नही पता! कभी तो आएगा वह पल जब मिल जाऊंगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
वक्त देखने लगा है हमको तो कब तक देखेगा ऐसे?
सब कुछ अच्छा है जब, तो परिणाम बुरा होगा कैसे?
नही! होगा जो होने दो, मगर विश्वास नही डगमगाउँगा...
सब कुछ अच्छा है जब, तो परिणाम बुरा होगा कैसे?
नही! होगा जो होने दो, मगर विश्वास नही डगमगाउँगा...
प्रिये, फिर अपने हृदय की गहराई में जाऊंगा...
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार
तस्वीर गूगल साभार
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!