Thursday, 24 August 2017

गांव जब शहर बन जायेगा

बहुत दिनों बाद गांव आकर गांव के बारे में लिखने को मन किया!!
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गांव जब शहर बन जायेगा
ये मिट्टी बदलेगी, ये घर बदलेगा
घर के बाबूजी पापा होंगे
और अम्मी जान मम्मी होंगी
जिस्म बदलेगा जमीन बदलेगी
रोशनदान होगी और रोशनी बदलेगी
घर की सारी सूरत बदलेगी
पेड़ बदलेंगे, गमला होगा
नक्श बदलेगा रूप रेखा बदलेगी
आदमी औरत बन जायेगा
गांव जब शहर बन जायेगा
छप्पर उजड़ेगा, ईट लगेंगी
तहखानों में तस्वीर लगेगी
किताब नही होंगे, लैपी होगा
दुनिया भर का चैनल होगा
टीवी चैनल, गेट का चैनल
योगा होगा तो जिम होगा
जिम में सिंथेटिक दूध होगा
रसायन होंगे, रसोई होगी
घर में दीपक नही बिजली होगी
आदमीं अब मशीन बन जायेगा
गांव जब शहर बन जायेगा
ताल नही नाली होगी
कीचड़ होगा, पानी होगी
मछली नही मच्छर मार होगा
घर-घर मे व्यापार होगा
रिश्तों का व्यापार, स्कूली व्यापार
घर में नौकर चाकर होंगे
पोछे वाली दादी अब बाई होंगी
व्यवहार नही बदलेगा
मगर सॉरी शब्द निकलेगा
आदमी अब गूगल बन जायेगा
गांव जब शहर बन जायेगा
आंगन में चहारदीवारी होगी
ग्वालिन, बिछु, सांप नही होंगे
घर में आर्टीफिशियल नाग होंगे
मोर नही नाचेंगे, कोयल नही कूकेगी
मुर्गा नही बोलेगा, अलार्म बोलेगी
गाय नही होगा, अमूल दूध देगी
खेत नही होंगे, पार्क होगा
राहों पे कोका और कोला होगा
आदमी हड्डी वाला हड्डी पचा रहा होगा
आदमी अब टिश्यू पेपर बन जायेगा
गांव जब शहर बन जाएगा
हवा नही, ऑक्सिजेन सिलिंडर होगा
आसमान नही, आसमानी छत होगा
चांद, तारे दीवाल पर अटके होंगे
रिश्ते व्हाट्सएप्प तक पे अटके होंगे
फेसबुक पर वाल बदलेगी
सेल्फी पर चेहरा नजर आएगा
किसी पर पर्दा नही नजर आएगा
बिल्डिंग होगी, घर का सामान होगा
इंसान नही होंगे लेकिन पहरेदार होगा
आदमी अब संवेदनहीन बन जाएगा
गांव जब शहर बन जायेगा
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार



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